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जहांगीरनामा।

बंगश।

कुलीचखांके लिखनेसे बादशाहने श्यामसिंह और रायधर मंगत भदोरियेके मनसब बढ़ा दिये। यह बंगशमें बादशाही लशकरके साथ थे।

श्यामसिंह तो डेढ़ हजारीसे दो हजारी होगया और रायधर मंगतका भी मनसब बढ़ा।

आसिफखांको मृत्यु।

आसिफखां जो अकबर बादशाहके समयसे वजीर रहता आया था और ५ हजारी मनसबको पहुंच गया था दक्षिण में ६० वर्षका होकर मर गया यह बहुत बुद्धिमान और विचक्षण था कवि भी था। घूसने बादशाहके नाम पर नूरवाम नामक एक ग्रन्थ फारसी भाषामें रचा था जिसमें शीरीं और खुमरोके प्रेमकी प्राचीन कथा है बादशाह लिखता है कि जितनी मैंने उसकी परवरिश की उतना उसको स्वामिभक्त नहीं पाया।

मिरजागाजीकी मृत्यु।

बैसाख सुदी १५ को मिरजा गाजीके मरनेको खबर आई। यह ठट्ठे के स्वामी मिरजा जानीका बेटा था जो अकबर बादशाहका अधीन होगया था इससे अकबरने ठट्ठा उमीके पास रहने दिया था वह बुरहानपुरमें मरा तब उसके बेटे मिरजा गाजीको अकबर बादशाहने कन्धारकी हुकूमत पर भेज दिया वह वहीं मरा उसकी जगह अबुलबेग उजबक बहादुरखांका खिताब और तीन हजारी मनसब पाकर कन्धारका हाकिम हुआ।

रूपखवास।

रूपखवासको जो अकबरका निज सेवक था बादशाहने खवास खांका खिताब हजारी जात पांचसौका मनसब और सरकार कन्नौजकी फौजदारीका काम दिया।

खुर्रमका दूसरा व्याह।

बादशाहने एतमादुद्दौलाके बेटे एतकादखांकी बेटी(१) खुर्रमके


(१) यह ताज बीबी थी जिसका रौजा आगरेंमें अति सुन्दर और सुरम्य बना है।