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संवत् १६६९।

दूसरे दिन चन्द्रवारको शुजाअतखांने यह समाचार किरावलों ने सुनकर पीछा किया। बलीने अब अधीन होजानाही उचित जानकार सन्धिका सन्देशा भेजा। शुजाअतखांने भी अपने साथियों को सम्मति स्वीकार कर लिया।

दूसरे दिन वली और उसमानके आई बेटे आकर मिले और ४९ हाथी भेटको लाये। शुजाअतखां कुछ लोगोंको अधार नाम उनके राज्य स्थानमें छोड़कर ६ सफर चन्द्रवार (चैत्र सुदी ८) को जहांगीरनगर में इसलामखांके पास आगया और वली आदि पठानों को भी लेआया।

बादशाह इस विजयसे बहुत प्रसन्न हुआ विशेषकर इसलिये कि बंगालका सूबा निष्कण्टक होगया। बारम्वार परमात्माका धन्यवाद करके इसलामखांका मनसब बढ़ाकर छः हजारी करदिया और शुजाअतखांको रुस्तमजमांका खिताब देकर हजारी जात और हजार सवार उनको भी अधिक कर दिये। इसी तरह दूसरे अमीरों का भी जो इस लड़ाईमें थे यथायोग्य मनसब बढ़ाया और उन्हें दूसरी कृपाओंसे सन्तुष्ट किया ।

फरंगदेशके पदार्थ।

चैत सुदी ३ को मुकर्रबखां खंभात बन्दरसे आया। वह बादशाहकी आज्ञासे गोवा बन्दर में जाकर वहां फरंगियोंसे बहुमूल्य पदार्थ मुँहमांगे दामों पर खरीद लाया था। बादशाह उनको देख कर आह्वादित हुआ। उसने कई विचित्र पक्षियों के चित्र चितेरों से जहांगीरनामे(१) में खिंचवाये और तुजुकमें लिखा कि बाबर बादशाहने कई जानवरोंकी सूरत शकल तो अपने ग्रन्थमें लिखी परन्तु चित्रकारोंको उनकी तसवीर बनानेका हुक्म नहीं दिया।


(१) जहांगीरनामा अभी हमारे देखने में नहीं आया है जो लखनऊमें मुंशी नवलकिशोरप्रेससे छापा है वह जहांगीरनामा नहीं है इकबालनामे जहांगीरीका तीसरा भाग है इकबालनामा भी वहीं छपा है फिर न जाने यह कैसे भूल होगई है।