पृष्ठ:जहाँगीरनामा.djvu/१६६

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१५०
जहांगीरनामा।

बादशाहके अधीन होजानेके वास्ते कहलाया परन्तु उसने नहीं माना। लड़ाईकी तैयारी की। ९(१) मुहर्रम रविवार (फागुन सुदी ११) को लड़ाई हुई उसमान बड़ी वीरतासे लड़ा। उसने बादशाही सेनाके हिरावल और दोनों भुजाओंको विध्वन्स कर डाला। तीनों फौजोंके सरदार मारे गये। फिर बीचकी अनी पर भी धावा किया और गजपति नाम लड़ाईके हाथीको शुजाअत- खां पर छोड़ा। शुजाअतखां भी उस हाथीसे खूब लड़ा और कई घाव बरछे और तलवारके लगाकर उसको भगाया तब उसमानने दूसरा हाथी बादशाही झण्डे पर दौड़ाया जिसने झंडेके घोड़ेको गिरा दिया। शुजाअतखांने पहुंचकर झंडेवालेको बचाया और उसको दूसरा घोड़ा देकर फिर झंडा खड़ा कराया। इतने में एक गोली न जाने किसके हाथकी उसमानके ललाटमें आकर लगी जिससे वह शिथिल तो होगया परन्तु दोपहर तक फिर भी अपने आदमियोंको लड़ाता रहा। अन्तको भाग निकला। उसके भाई वली और बेटे ममरेजने अपने डेरों पर बादशाही फौजका जो उसमानके पीछे गई थी तीरों और बंदूकोंसे ऐसा सामना किया कि वह अन्दर न घुस सकी। आधीरात बीतनेपर उसमान मर गया। वह लोग उसकी लाश लेकर और माल असबाब वहीं छोड़कर अपने किले में आगये।


(१) तारीख ९ मुहर्रमको रविवार नहीं मंगलवार था रविवार को तो ७, १४, २१ और २८ थी इसमें दो दिनकी भूल है आगे ९ सफार चन्द्रवारको सही है पर इसमें यह शंका होती है कि बादशाहके पास १३ फरवरदीनको जिस दिन कि २८ मुहर्रम थी और बादशाह न मालूम क्योंकर २९ लिखता है ६ सफर २१ फरवरदीन चैत्र सुदी ८।९ तकको खबरें पहिलेही कैसे आगई थीं जो उसने १३ फरवरदीनके वृत्तान्त में लिखी है यह तो २१ फरवरदीनके पीछे की तारीखोंमें लिखी जाना चाहिये थीं।