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जहांगीरनामा।

लगी या नहीं इसका कुछ पता न लगा। क्योंकि में ऊंचे पर था और सिंह नीचे। क्षणभर पीछे मैंने घबराहटमें दूसरी बन्दूक चलाई। शायद यह गोली उसके लगी। वह उठा और दौड़ा। एक मीर शिकारी शाहीनको हाथ पर लिये उसके सामने पड़ा। वह उसको घायल करके अपनी जगह जा बैठा। मैंने दूसरी बन्दूक तिपाये पर रखकर तोली। अनूपराय तिपायेको पकड़े खड़ा था एक तलवार उसकी कमरमें थी और लाठी हाथमें। बाबा खुर्रम बाई ओर कुछ फासिलेसे था और रामदास तथा दूसरे नौकर उसके पीछे थे। कमाल किरावल (शिकारी) ने बन्दूक भर कर मेरे हाथमें दी। मैं चलायाही चाहता था कि इतनेमें शेर गरजता हुआ हमारे ऊपर झपटा। मैंने बन्दूक मारी। गोली उसके मुंह और दांतोंमें होकर निकल गई। बन्दूककी कड़कसे वह और बिफरा। बहुतसे सेवक जो वहां आ भरे थे डरकर एक दूसरे पर गिर गये। मैं उनके धक्के से दो एक कदम पीछे जापड़ा । यह मुझे निश्चय है कि दो तीन आदमी मेरी छाती पर पांव रख कर मेरे ऊपर से निकल गये। मैं एतमादराय और कमाल किरावल के सहारेसे खड़ा हुआ इस समय सिंह उन लोगों पर गया जो बाई तरफ खड़े थे। अनपराय तिपायेको हाथसे छोड़कर सिंहके सामने हुआ। सिंह जिस फुरतीसे आरहा था उसी फुरतीसे उसकी ओर लौटा। उस पुरुष सिंहने भी वीरतासे सम्मुख जाकर वही लाठी दोनों हाथोंसे दो बार उसके सिर पर मारी। सिंहने मुंह फाड़कर अनूपरायके दोनो हाथ चबाडाले। परन्तु उस लाठी और कई अंगूठियोंसे जो हाथमें थीं बड़ा सहारा मिला और हाथ बेकार न हुए। अनूपराय सिंहके धक्के से उसके दोनो हाथोंके बीचमें चित गिर गया। उसका मुंह सिंहकी छातीके नीचे था। बाबा खुर्रम और रामदास अनूपरायकी सहायताको बढ़े। खुर्रम ने एक तलवार सिंहकी कमर पर मारी रामदासने दो मारीं। जिनमेंसे एक उसके कन्धे पर पूरी बैठी हयातखांके हाथमें