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जहांगीरनामा।

बादसे काले पत्थरका सिंहासन लाया उसे बादशाहने मंगवाया था। यह दो गिरह कम ४ गज लम्बा अढ़ाई गज और तीन तसू चौड़ा और ३ तसू मोटा बहुत काला और चमकदार था। बादशाहने उसकी कोरों पर कुछ कविता खुदवाकर पाये भी वैसेही पत्थरके लगवा दिये। बादशाह कभी कभी उस पर बैठा करता था।

दक्षिण।

१२ महर (कार्तिक बदी ३) को खानजहांकी अरजी पहुंची कि खानखानां, आज्ञानुसार महाबतखांके साथ दरबारको रवाने होगया और मीर जमालुद्दीनको आदिलखांके वकीलों सहित बीजापुरको भिजवा दिया है।

सूबेदारोंकी बदली।

२१ महर (कार्तिक बदी १३) मुरतिजाखां पंजाबकी सूबेदारी पर और ताजखां सुलतानसे काबुलकी सूबेदारी पर भेजा गया मुरतिजाखांको खासेका दुशाला मिला और ताजखांके मनसबमें पांच सौ सवार और बढ़कर तीन हजारी और दोहजार सवारोंका मन- सब होगया।

राणा सगर।

अबदुल्लहखां फीरोजजङ्गके प्रार्थना करनेसे राणा सगरके बेटेका भी मनसब बढ़ गया।

खानखानां।

१२ आबान (अगहन बदी ३।४)(१) को खानखानांने जिसे लेने महाबतखां गया था बुरहानपुरसे पाकर मुजरा किया। बादशाह लिखता है--"उसके विषयमें बहुधा शुभचिन्तकोंने यथार्थ और प्रयथार्थ बातें अपनी समझसे कही थीं और मेरा दिल उससे फिर गया था। इसलिये जो कृपा मैं सदामे उसपर करता था या अपने बापको करते देखता था वह इस समय नहीं की। ऐसा करने में मैं सच्चा था क्योंकि वह इससे पहिले दक्षिण देशके साफ करनेकी


(१) इस दिन तिथि छेद था अर्थात् दोनों तिथियां एक दिन थीं।