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जहांगीर बादशाह संवत १६६४।

खुर्रमका तुलादान।

२(१) रबीउस्मानी (सावन सुदी ३) शुक्रवारको बादशाह खर्रम के डेरे पर जो "ओरने" बागमें था गया। अकबर बादशाह आप तो सालमें दो बार अपने जन्मकी मौर और सौम तिथिको तुला दान करता था और शारजादोंको एक बार उनके जन्मकी सौर- तिथिको तोलता था। परन्तु इस दिन जो सौमपक्षका सोलहवां साल खुर्रमको लगा था उसको ज्योतिषियोंनि भारी बताया था और वह कुछ बीमार भी था इस लिये बादशाहने उसको सोने चांदी और धातु आदि पदार्थो में विधिपूर्वक तौलकर वह सब माल पुण्य करा दिया।

काबुलसे कूच।

४(२) रविउलअब्बल (सावन सुदी५) को बादशाहने हिन्दुस्थान जानेके लिये बाहर डेरे कराये और कुछ दिन पीछे आप भी काबुल से "जलगाह संगसफेद" में आगया। उसने काबुलके मेवों और विशेष कर साहबी और किशमिशी जातिके अंगूरों, शाह आलू, जर्द आलू और शफतालुको बहुत प्रशंसा की है। अपने चचाके लगाये हुए जर्द आलूको सबसे अच्छा बताया है। एक बड़े फलको तोलमें २५ रुपये भरका कहा है। अन्त में लिखा है कि काबुली मेवोंके सरस होने पर भी मेरी रुचि में उनमेंसे एक भी आमके स्वादको नहीं पहुं- चता है।

एक समय बादशाहने चलते चलते देखा कि अलीमसजिद और गरीबखानेके पास एक बड़ी मकड़ीने जो केकड़ेके बराबर थी डेढ़ गज लम्बे सांपको गला पकड़कर अधमरा कर रखा था। बादशाह यह तमाशा देखनेको ठहर गया। थोडी देर में सांप मर गया।


(१) मूलमें ६ गलत लिखी है पृ० ५५।

(२) मूलमें ४ जमादिउलअब्वल गलत है रवीउस्मानी चाहिये पृष्ठ ५५।