पृष्ठ:जहाँगीरनामा.djvu/१०३

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
८७
जहांगीर बादशाह न० १६६४।

यह लेख खुदा था कि यह सिंहासन जहीरूद्दीन मुहम्मदबाबर बादशाहका है जिसका राज्य चिरस्थायी रहे। सन् ९१४ (सं० १५६१)

बादशाहने इसके बराबर एक सिंहासन, और वैसाही एक कुण्ड पत्थर कटवाकर बनवाया और वहां अपना और अमीर तैमर का नाम खुदवा दिया।

बादशाह जिस दिन इस सिंहासन पर बैठा था। उस दिन दोनो कुण्डों में मदिरा भरवा दी गई थी। जो नौकर वहां हाजिर थे उनको पीनेका हुक्म देदिया था।

गजनीनके एक शाइरने बादशाहके काबुलमें आनेकी यह तारीख कही थी।

बादशाहे बलाद हफ्त इकलीम (१)

अर्थात् सात विलायतोंके शहरोंका बादशाह।

बादशाहने उसको इनाम और सिरोपाव देकर यह तारीख भी उसी सिंहासनके पास दीवार पर खुदवा दी।

पचास हजार रुपये शाहजादे परवेजको दिये गये। वजीरुलमुल्क मीरबखशी हुआ और कुलीचखांके नाम हुक्म लिखा गया कि एक लाख १७ हजार रुपये लाहोरके खजानेसे कन्धारके लशकरमें खर्चके वास्ते भेजदे।

चकरीका रईस एक जङ्गको तीरसे मारकर लाया यह जानवर बादशाहने तबतक नहीं देखा था। लिखा है कि पहाड़ी बकरे में और इसमें एक सींगका फर्क है। बकरेका सींग सीधा होता है और जंगका टेढ़ा बलदा।

वाकेआत बाबरी।

काबुलके प्रसंगसे बादशाह वाकेआतबाबरीको पढ़ा करता था। वह बाबर बादशाहके हाथकी लिखी हुई थी। उसके ३२ पृष्ट बादशाहने अपने हाथसे लिखे और उनके नीचे तुरकी बोलीमें


(१) इसमें सन् १०१८ निकलते हैं और चाहिये १०९६।