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॥श्रीः॥

चन्द्रकान्ता सन्तति

चौथा हिस्सा


पहिला बयान

अब हम अपने किस्से को फिर उसी जगह से शुरू करते हैं जब रोहतासगढ़ किले के अंदर लाली को साथ लेकर किशोरी सेंध की राह उस अजायबघर में घुसी जिसका ताला हमेशा बंद रहता था और दरवाजे पर बराबर पहरा पड़ा रहता था। हम पहले लिख आए हैं कि जब लाली और किशोरी उस मकान के अंदर घुसीं उसी समय कई आदमी उस छत पर चढ़ गये और "धरो, पकड़ो, जाने न पावें!" की आवाज लगाने लगे। लाली और किशोरी ने भी यह आवाज सुनी। किशोरी तो डरी मगर लाली ने उसी समय उसे धीरज दिया और कहा, "तुम डरो मत, ये लोग हमारा कुछ भी नहीं कर सकते।"

लाली और किशोरी छत की राह जब नीचे उतरीं तो एक छोटी-सी कोठरी में पहुँचीं जो बिल्कुल खाली थी। उसके तीन तरफ दीवार में तीन दर्वाजे थे, एक दर्वाजा तो सदर का था जिसके आगे बाहर की तरफ