इन्द्रियाँ शिथिल हो गई थीं, स्वास्थ्य और बल भी विदा हो चुकी थी; परन्तु श्रम से कुछ ऐसा सहज प्रम था कि अन्तिम क्षण तक कुछ
न कुछ करता रहा। और जब सब शक्तियाँ जवाब दे चुकीं, तो बैठा
उपन्यास लिखवाया करता। अन्त में १८८४ ई० में थोड़े दिन बीमार
रहकर इस नश्वर जगत् से विदा हो गया। और एक ऐसे पुरुष की
स्मृति छोड़ गया जो स्वदेश की सच्चा भक्त और राष्ट्र का ऐसा सेवक
था, जिसने अपने अस्तित्व को उसके अस्तित्व में निमज्जित कर दिया था, और जो न केवल इटली का, किन्तु अखिल मानवजाति का मित्र और हितचिन्तक था। आज इसका नाम इटालियन जाति के एक-एक बच्चे की जबान पर है। इसके साहस, उदारता, ऊँचे हौसले और सौजन्य की सैकड़ों कथाएँ साधारण चर्चा का विषय हैं। शायद ही कोई शहर हो जिसने उसकी प्रतिमा स्थापित कर अपनी कृतज्ञता का परिचय न दिया हो। पर उसकी कार्यावली का सबसे बड़ा स्मारक वह विस्तृत राज्य है जो आल्प्स पर्वत से लेकर सिसली तक फैला हुआ है और वह राष्ट्र है जो आज इटालियन के नाम से प्रसिद्ध है।
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कलम, तलवार और त्याग
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