पृष्ठ:कबीर ग्रंथावली.djvu/८२

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उपसंहार हिंदी के काव्य-साहित्य में कबीर के स्थान का निर्णय करना कठिन है। तुलना के लिये एक हो क्षेत्र के कवियों को लेना चाहिए। कबोर का काव्य मुक्तक क्षेत्र के अंतर्गत है। उसमें भी उन्होंने कुछ ज्ञान पर कहा है और कुछ नीति पर। नानक, दादू, सुंदरदास आदि ज्ञानाश्रयी निर्गुण भक्त कवियों में वे सहज ही सबसे बढ़कर हैं। नानक दादू आदि कबोर की ही पुनरावृत्तियाँ हैं, परंतु उस शक्ति के साथ नहीं। सुंदरदास में साहित्यिकता कबोर से अधिक है परंतु आँचल में अस्वाभाविकता भी वे खूब बाँध लाए हैं। नीति-काव्य की सफलता की कसौटी उसकी सर्वप्रियता है। कबीर के नीति- काव्य की सर्वप्रियता न द को प्राप्त हुई और न रहोम को। रहीम में कबोर के भाव ज्यों के त्यों मिलते हैं। कहीं तो दोहे का दोहा रहीम ने अपना लिया है; यथा- कीर यह घर प्रेम का खाला का घर नाहि । पीस उतारै हाथ करि सो पैसे घर माहि ।। -कबीर । रहिमन घर है प्रेम का खाला का घर नाहि । सीस उतारै भुइँ धरै सो जादै घर माहि ।। _-रहीम । बृद और कबार की विदग्धता एक सी है। रहस्यवादी कवियों में भी कबीर का ही आसन सब से ऊँचा है। शुद्ध रहस्यवाद केवल उन्हीं का है। प्रेमाख्यानक कवियों का रहस्यवाद तो उनके प्रबंध के बीच बीच में बहुत जगह थिगलो सा लगता है और प्रबंध से अलग उसका अभिप्राय ही नष्ट हो जाता है। अन्य क्षेत्रों के कवियों के साथ कबीर की तुलना की ही नहीं जा सकती। तुलसी और सूर कविता के साम्राज्य में सर्वसम्मति से और सब कवियों