पृष्ठ:कबीर ग्रंथावली.djvu/७६

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में बल है जो दूसरे पर प्रभाव डाले बिना नहीं रह सकता । अक्खड़ ढंग से कही होने पर भी उनकी बेलाग बातों में एक और ही मिठास है जो खरी खरी बातें कहनेवाले ही की बातों में मिल सकती है। उनकी सत्यभाषिता और प्रतिभा का ही फल है कि उनकी बहुत सी उक्तियाँ लोगों की जबान पर चढ़कर कहावतों के रूप में चल पड़ी हैं। हार्दिक उमंग की लपेट में जो सहज विग्दधता उनकी उक्तियों में आ गई है, वह अत्यंत भावापन्न है। उसी में उनकी प्रतिभा का चमत्कार है। शब्दों के जोड़ तोड़ से चमत्कार लाने के फेर में पड़ना उनकी प्रकृति के प्रतिकूल था। दूर की सूझ जिस अर्थ में केशव बिहारी आदि कवियों में मिलती है, उस अर्थ में उनमें पाना असंभव है। प्रयत्न उनकी कविता में कहीं नहीं दिखाई देता। अर्थ की जटिलता के लिये उनकी उलटवासियाँ केशव की शब्दमाया को मात करती हैं। परंतु उनमें भी प्रयत्न दृष्टिगत नहीं होता। रात दिन आँखों में आनेवाले प्रकृति के समान्य व्यापारों के उलटे व्यवहार को ही उन्होंने सामने रखा है। सत्य के प्रकाश का साधन बनकर, जिसकी प्रगाढ़ अनुभूति उनको हुई थी, कविता खयमेव उनकी जिह्वा पर प्रा बैठी है। इसमें संदेह नहीं कि कबीर में ऐसी भी उक्तियाँ हैं जिनमें कविता के दर्शन नहीं होते-और ऐसे पद्य कम नहीं हैं किंतु उनके कारण कबोर के वास्तविक काव्य का महत्त्व कम नहीं हो सकता, जो अत्यंत उच्च कोटि का है और जिसका बहुत कुछ माधुर्य रहस्यवाद के प्रकरण के अंतर्गत दिखाया जा चुका है। जैसे कबीर का जीवन संसार से ऊपर उठा था, वैसे ही उनका काव्य भी साधारण कोटि से ऊँचा था। अतएव सीखकर प्राप्त की हुई रसिकता को उनमें काव्यानंद नहीं मिलता। परंपरा से बँधे हुए लोगों को काव्य-जगत् में भी इंद्रिय-लोलुपता का कोड़ा बनकर