पृष्ठ:कबीर ग्रंथावली.djvu/७५

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सबका कारण परब्रह्म किसी का कार्य नहीं है, इस बात का आभास देनेवाला यह सांकेतिक पद कितना रहस्यपूर्ण है। बाँझ का पूत, बाप बिन जाया, बिन पाउँ,तरवर चढ़िया । अस-बिन पाषर, गज-बिन गुड़िया, बिन पंडै संग्राम लड़िया ।। बीज-बिन अंकूर,पेड़-बिन तरवर, बिन-साषा तरवर फलिया। रूप-बिन नारी, पुडुप-बिन परिमल, बिन-नीरे सर भरिया ।। सभी संत कवियों के काव्य में थोड़ा बहुत रहस्यवाद मिलता है। पर उनका काव्य विशेषकर कबीर का ही ऋणी है। बंगला के वर्तमान कवोंद्र रवींद्र को भी कबीर का ऋण स्वीकार करना पड़ेगा। अपने रहस्यवाद का बोज उन्होंने कबीर ही में पाया। परंतु उनमें पाश्चात्य भड़कीली पालिश भी है। भारतीय रहस्यवाद को उन्होंने पाश्चात्य ढंग से सजाया है। इसी से यूरोप में उनकी इतनी प्रतिष्ठा हुई है। जब से उन्हें नोबेल प्राइज (पुरस्कार मिला तब से लोग उनकी गीतांजलि की बेतरह नकल करने पर तुले हुए हैं। हिंदी का वर्तमान रहस्यवाद अब तक नकल ही सा लगता है। सच्चे रहस्यवाद के प्राविर्भाव के लिये प्रतिभा की अपेक्षा होती है। कबीर इसी प्रतिभा के कारण सफल हुए हैं। पिंगल के नियमों का भंग करके खड़ा किया हुआ निरर्थक शब्दाडम्बर रहस्यवादी कविता का प्रासन नहीं प्राप्त कर सकता। कबीर के काव्य के विषय में बहुत कुछ बातें उनके रहस्यवाद के अंतर्गत पा चुकी हैं; यहाँ पर बहुत कम कहना शेष है। कविता के लिये उन्होंने कविता नहीं की है। उनकी विचारधारा सत्य की खोज में बही है, उसी का प्रकाश करना उनका ध्येय है। उनकी विचार-धारा का प्रवाह जीवन-धारा के प्रवाह से भिन्न नहीं। उसमें उनका हृदय घुला मिला है। उनकी प्रतिभा हृदय-समन्वित है। उनकी बातो काव्यत्व