पृष्ठ:कबीर ग्रंथावली.djvu/६५

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उनकी विनय यहाँ तक पहुँची है कि वे बाट का रोड़ा हो- कर रहना चाहते हैं जिस पर सबके पैर पड़ते हैं। परंतु रोड़ा पाँव में चुभकर बटोहियों को दुःख देता है, इसलिये वे धूल के समान रहना उचित समझते हैं। किंतु धूल भी उड़कर शरीर पर गिरती है और उसे मैला करती है, इसलिये पानी की तरह होकर रहना चाहिए जो सबका मैल धेोवे। पर पानी भी ठंढा और गरम होता है जो अरुचि का विषय हो सकता है। इसलिये भगवान् की ही तरह होकर रहना चाहिए। कबीर का गर्व और दैन्य दोनों मनुष्य को उसकी पारमात्मिकता की अनुभूति करानेवाले हैं। ____कबीर पहुँचे हुए ज्ञानी थे। उनका ज्ञान पोथियों से चुराई हुई सामग्री नहीं था और न वह सुनी सुनाई बातों का बेमेल भंडार ही था। पढ़े लिखे तो वे थे नहीं परंतु सत्संग से भी जो बातें उन्हें मालूम हुई, उन्हें वे अपनी विचार-धारा के द्वारा मानसिक पाचन से सर्वथा अपना ही बना लेने का प्रयत्न करते थे। उन्होंने स्वयं कहा है 'सो ज्ञानी आप विचारै'। फिर भी कई बातें उनमें ऐसी मिलती हैं जिनका उनके सिद्धांतों के साथ मेल नहीं पड़ता। उनकी ऐसी उक्तियों को समय और परिस्थितियों का तथा भिन्न भिन्न मतावलंबियों के संसर्ग का अलक्ष्य प्रभाव समझना चाहिए ।

 कबीर बहुश्रुत थे। सत्संग से वेदांत, उपनिषदों और पौराणिक कथाओं का थोड़ा बहुत ज्ञान उनको हो गया था परंतु वेदो का उन्हें कुछ भी ज्ञान नहीं था। उन्होंने वेदों की जो निंदा की है,

वह यह समझकर कि पंडितों में जो पाषंड फैला हुआ है, वह वेद-ज्ञान के कारण ही है। योग की क्रियाओं के विषय में भी उनकी जानकारी थी। इंगला,पिंगला,सुषुम्ना, षट्चक्र आदि का उन्होंने उल्लेख किया है परंतु वे योगी नहीं थे। उन्होंने योग को भी माया में सम्मिलित किया है। केवल हिंदू मुसलमान दो धर्मों का उन्होंने