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परिशिष्ट

ज्यों जान छोडि बाहर भयो मीना ।पूरब जनम हैं। तप का हीना॥
अब कहु राम कवन गति मोरी । तजीले बनारस मति भई घोरो ।।
सकल जनम सिवपुरी गवाया । मरती बार मगहर उठि आया ।
बहुत वर्ष तप कीया कांसी । मरन भया मगहर की बासी ।
कासी मगहर सम बीचारी । ओछी भगति कैसे उतरसि पारी ।।
कहु गुरु गजि सिव सब को जानै।मुया कबीर रमत श्री रामै१०३।।

ज्योति की जाति जाति की ज्योती !तितु लागे ऊंचुआ फल मोती॥
कौन सुघर जो निभौ कहिये । भव भजि जाइ अभय है रहियै ।।
तट तीरथ नहिं मन पतियाइ । चार अचार रहे उर झाइ ॥
पांप पुण्य दुइ एक समान । निज घर पारस तजहु गुन आन१०४।।

टेढ़ी पाग टेढ़े चले लागे वीरे खान ।
भाउ भगत स्यों काज न कछुए मेरो काम दीवान ।।
राम विसारयो है अभिमानी।
कनक कामिनी महा सुंदरी पेखि पेखि सचु मानी !
लालच झूठ विकार महा मद इह बिधि औध बिहानि ।
कंहि कबीर अंत की बेर आई लागो काल निदानि१०५।।

डंडा मुंद्रा खिंथा आधारी । भ्रम कै भाइ भवै भेषधारी ।
आसन पवन दुरि करि बवरे । छाडि कपट नित हरि भज बबरे ।।
जिह तू याचहि सो त्रिभुवन भोगी।कहि कबीर कैसो जग जोगी१०६।

तन रैनी मन पुनरपि करिहै। पाचौ तत्त्व बराती।
राम राइ स्यों भाँवरि लैहो पातम तिह रंगराती ।
गाउ गाउ री दुलहनी मंगलचारा-
मंरे गृह आये राजा राम भतारा ।।
नाभि कमल महि बेदी रचि ले ब्रह्म ज्ञान उच्चारा ।
राम राइ स्यों दूल्ही पायो अस बड़ भाग हमारा ।।