कुछ लोग कबीर को नीरू और नीमा का औरस पुत्र मानते हैं,
परंतु इस मत के पक्ष में कोई ससार प्रमाण अब तक किसी ने नहीं
दिया। स्वयं कबीर की एक उक्ति हम ऊपर दे चुके हैं जिससे
उनका जन्म से मुसलमान न होना प्रकट होता है; परंतु "जोर
खुदाई तुरक मोहि करता आपै कटि किन जाई' से यह ध्वनित
होता है कि वे मुसलमान माता पिता की संतति थे। सब बातों
पर विचार करने से इसी मत के ठीक होने की अधिक संभावना है
कि कबीर ब्राह्मणी या किसी हिंदू स्त्री के गर्भ से उत्पन्न और मुसल-
मान परिवार में लालित पालित हुए थे। कदाचित उनका बालक-
पन मगहर में बीता हो और वे पोछे से आकर काशी में बसे हो,
जहाँ से अंतकाल के कुछ पूर्व उन्हें पुनः मगहर जाना पड़ा हो।
किंवदंती है कि जब कबीर भजन गा गाकर उपदेश देने लगे,
तब उन्हें पता चला कि बिना किसी गुरु से दोक्षा लिए हमारे उप.
देश मान्य नहीं होंगे क्योंकि लोग उन्हें निगुरा'
गुरु
कहकर चिढ़ाते थे। लोगों का कहना था कि
जिसने किसी गुरु से उपदेश नहीं ग्रहण किया, वह ौरा को क्या
उपदेश देगा? अतएव कबार को किसी को गुरु बनाने की चिता
हुई। कहते हैं, उस समय स्वामी रामानंदजी काशी में सबसे
प्रसिद्ध महात्मा थे। अतएव कबीर उन्हीं की सेवा में पहुँचे ।
परंतु उन्होंने कबीर के मुसलमान होने के कारण उनको अपना
शिष्य बनाना स्वीकार नहीं किया। इस पर कबीर ने एक चाल चलो
जो अपना काम कर गई। रामानंदजी पंचगंगा घाट पर नित्य प्रति
प्रातःकाल ब्राह्म मुहूर्त में ही स्नान करने जाया करते थे। उस घाट की
सीढ़ियों पर कबीर पहले ही से जाकर लेट रहे। स्वामीजी जब
स्नान करके लौटे तो उन्होंने अँधेरे में इन्हें न देखा। उनका पांव
इनके सिर पर पड़ गया जिस पर स्वामीजी के मुँह से 'राम राम'
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