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परिशिष्ट

हरि महि तनु है तनु महि हरि है सर्व निरंतर सोइ रे।
कहि कबीर राम नाम न छोड़ो सहजे होइ सु होइ रे ॥ १५ ॥
आगम दुर्गम गढ़ रचियो बास । जामहि जोति करै परगास ।।
बिजली चमकै होइ अनंद । जिह पौड़े प्रभु बाल गुबिंद ॥
इहु जीउ राम नाम लव लागै। जरा मरन छूटे भ्रम भागै ॥
अबरन बरन स्यों मन ही प्रोति । हौं महि गावन गावहि गीति ॥
अनहद सबद होत झनकार । जिह पौड़े प्रभु श्रीगोपाल ॥
खंडल मंडल मंडल मंडा । त्रिय प्रस्थान तीनि तिय खंडा ।।
अगम अगोचर रहा अभ्यंत । पार न पावै को धरनीधर मंत ।।
कदली पुहुप धूप परगास । रज पंकज महि लियो निवास ।।
द्वादस दल अभ्यंतर मंत । जह पौड़े श्रीकमलाकंत ।।
अरध उरध मुख लागी कास । सुन्न मडल महि करि परगासु ॥
ऊहां सूरज नाहों चंद । आदि निरंजन करै अनंद ।। ।
सो ब्रह्म डि पिंड सो जानु । मान सरोवर करि स्नानु ।
सोहं सो जाकहु है जाप जाका लिपत न होइ पुन्न अरु पाप ॥
अबरन बरन घाम नहि छाम । अबरन पाइयै गुरु की साम ।
टारी न टरै प्रावै न जाइ । सुन्न सहज महि रह्यो समाइ ।।
मन मद्धे जाने जे कोइ । जो बोले सो आपै होइ ।।
जोति मंत्रि मनि अस्थिर करैः कहि कार सो प्रानी तरै ॥ १६ ॥
आपे पावक आपे पवना । जारै खसम त राखै कवना ॥
राम जपतु तनु जरि किन जाइ : राम नाम चित रह्या समाइ ॥
काको जरै काहि होइ हानि ! नटवर खेले सारिंगपानि ॥
कहु कबीर अक्खर दुइ भाखि ।होइगा खसम त लेइगा राखि॥१७॥
पास पास घन तुरसी का बिरवा माँझ बनारस गाँऊ रे।
वाका सरूप देखि मोही ग्वारनि मोको छोड़ि न पाउ न जाहुरे॥
तोहि चरन मन लागो। सारिंगधर सो मिलै जो बड़ भागो॥