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रमैणी

अबिगत अपरंपार ब्रह्म,ग्यांन रूप सब ठांम ।
बहु बिचार करि देखिया,कोई न सारिख रांम ।।
जो त्रिभवन पति है ऐसा,ताका रूप कहा धौं कैसा ।
सेवग जन सेवा के ताई',बहुत भांति करि सेवि गुसाई।
तैसी सेवा चाहा लाई,जा सेवा बिन रहा न जाई ।
सेव करता जो दुख भाई,सो दुख सुख बरि गिनहु सवाई ॥
सेव करतां सो सुख पावा,तिन्य सुख दुख दोऊ बिसरावा ।।
सेवग सेव भुलांनियां,पंथ कुपंथ न जांन ।।
सेवग सो सेवा करै,जिहि सेवा भल मांन ।।
जिहि जग की तम की तस के ही,आप आप प्राथिहै एही ॥
'कोई न लखई वाका भेऊ,भेऊ होइ तो पावै भेऊ॥
बावै न दाहिनै प्रागै न पीछु,अरध न उरध रूप नहीं कीछु ।
माय न बाप प्राव नहीं जावा,नां वहु जण्यां न को वहि जावा ॥
वो है तैसा वोही जान,ओही पाहि पाहि नहीं आंनें ।
नैनां बैन अगोचरी,श्रवनां करनी सार ।
बालन के सुख कारन,कहिये सिरजनहार ॥
सिरजनहार नाउ धूं तेरा,भौसागर तिरिबे कू भेरा ॥
जे यहु भेरा राम न करता,तो आपैं पाप प्रावटि जग मरता ।।
राम गुसाई मिहर जु कीन्हां,भेरा साजि संत को दीन्हां ।।
दुख खंडण मही मडणां,भगति मुकति बिश्रांम ।
बिधि करि भेरा साजिया,धरसा राम का नांम ॥
जिनि यदु भेरा दिढ़ करि गहिया,गये पार तिन्हैं। सुख लहिया।।
दुमनां है जिनि चित्त डुलावा,कर छिटके थै थाह न पावा ॥
इक डूबे अरु रहे उरवारा,ते जगि जरे न राखणहारा ॥.
राखन की कछु जुगति न कीन्हीं,राखणहार न पाया चीन्हीं ॥
जिनि चीन्हां ते निरमल अंगा,जे प्रचीन्ह ते भये पतंगा।
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