पृष्ठ:कबीर ग्रंथावली.djvu/३२१

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रमैंणी

करि सनमुखि जब ग्यांन बिचारी, सनमुखि परिया प्रगनि मंझारी।
गछत गछत जब प्रागै प्रावा, बित उनमांन ढिबुवा इक पावा ।।
सीतल सरीर तन रह्या समाई, तहां छाडि कत दाझै जाई ।।
यूं मन बारूनि भया हमारा, दाधा दुख कलेस संसारा ।।.
जरत फिरे चौरासी लेना, सुख कर मूल किन हूँ नहीं देखा ॥
जाकं छाई भये अनाथा, भूलि पर नहीं पावै पंथा ।
अछै अभि-अंतरि नियरै दूरी, बिन चोन्हयां क्यू पाइये मृरी ।।
जा बिन हस बहुत दुख पावा, जरत जरत गुरि राम मिलावा ।।
मिल्या राम रह्या सहजि समाई, खिन बिछुखां जीव उरम जाई ।।
जा मिलियां तें कीजै बधाई, परमानंद रै नि दिन गाई ।।
सखी सहेली लीन्ह बुलाई, रुति परमानंद भेटियै जाई ।।
सखी सहेली करहि अनंदू, हित करि भेटे परमानंदू ।।
चली सखी जहुवां निज रांमां, भयं उछाह छाड़े सब कांमां ।।
जांनू कि मोर सरस बसंता, मैं बलि जांऊ तारि भगवता ।।
भगति हेत गावै लैलोना, ज्यूं बन नाद काकिला कीन्हां ।।
बाजै संख सबद धुनि बेना, तन मन चित हरि गोबिद लीनां ।।
चल अचल पाइन पंगुरनी, मधुकरि ज्यू लेहि अघरनी ।।
सावज सीह रहे सब मांची, चंद अरु सूर रहे रथ खांची ॥
गण गंध्रप मुनि जोवै देवा, आरति करि करि बिनवै सेवा ।।
बासि गयद्र ब्रह्मा करें प्रासा, हम क्यूचित दुल भ रांम दासा ॥
भगति हेत राम गुन गांवै, सुर नर मुनि दुरलभ पद पावै॥
पुनिम बिमल ससि मास बसंता, दरसन जोति मिले भगवता॥
चदन बिलनी बिरहनि धारा, यूपूजिये प्रानपति राम पियारा॥
भाव भगति पूजा अरु पाती, प्रातमरांम मिले बहु भांती ॥
राम राम राम रुचि मान, सदा अनंद राम ल्यौ जाने ।
पाया सुख सागर कर मूला, सो सुख नहीं कहूं सम तूला ॥