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पदावली

दिनां चारि के सुरंग फूल,तिनहि देखि कहा रह्यौ है भूलं ॥
या बनासपती मैं लागैगी आगि,तब तूं जैहौ कहां भागि ॥
पहुप पुरांने भये सूक,तब भवरहि लागी अधिक भुख ।।
उड़यौ न जाइ बन गयौ है छूटि,तब भवरी रूंनी सीस कूटि ।
दह दिसि जोवै मधुप राइ,तब भवरी ले चली सिर चढ़ाइ ।।
कहै कबीर मन कौ सुभाव,रांम भगति बिन जम कौ डाव ॥३८८॥

  आवध रांम सबै करम करिहूं,
सहज समाधि न जम थैं डरिहूं ॥ टेक ॥
कुभरा है करि बासन घरिहूं,धोबी है मल धोऊं ।
चमरा है करि रंगौं अधौरी,जाति पांति कुल खाऊं ॥
तेली है तन कोल्हू करिहैं।,पाप पुंनि दोऊ पीरौं ।
पंच बैल जब सूध चलाऊँ,रांम जेवरिया जोरूं ॥ .
छत्रो है करि खड़ग सँभालूं,जोग जुगति दोउ साधूं ।
नऊवा है करि मन कूं मूंडूं,बाढ़ी है कर्म बाढूं ॥ .
अवधू है करि यहु तन धूतौं,बधिक है मन मारूं ।
बनिजारा है तत कूं बनिजूं,जूवारी है जम हारूं ॥
तन करि नवका मन करि खेवट,रसनां करऊं बाडारूं ।।
कहि कबीर भौसागर तिरिहूं,आप तिरूं बप तारूं ॥ ३८६ ॥

[ राग मालीगौड़ी ]

  पंडिता मन रंजिता,भगति हेत ल्यौ लाइ रे ।
  प्रेम प्रीति गोपाल भजि नर,और कारण जाइ रे ॥ टेक ॥
दांम छै पणि कांम नांहीं,ग्यांन छै पणि धंध रे ।
प्रवण छै पणि सुरति नांहीं,नैंन छै पणि अंध रे ॥