पृष्ठ:कबीर ग्रंथावली.djvu/२८

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
(१८)


जैसा कि हम आगे चलकर बतलावेंगे, उनके सिद्धांत और व्यवहार में भेद न रखने का फल है। कबीरदास के जीवनचरित्र के संबंध में तथ्य की बातें बहुल • कम ज्ञात हैं; यहां तक कि उनके जन्म और मरण के संवतों के विषय में भी अब तक कोई निश्चित बात नहीं काल-निर्णय ज्ञात हुई है। कबीरदाम के विषय में लोगों ने जो कुछ लिखा है, सब जनश्रुतियों के आधार पर है। इनका समय भी अनुमान के आधार पर निश्चित किया गया है। डा० हंटर ने इनका जन्म संवत् १४३७ में और विल्सन साहब ने मृत्यु संक्त् १५०५ में मानी है। रेबरेंड वेस्टकाट के अनुसार इनका जन्म संवत् १४६७ में और मृत्यु सं० १५७५ में हुई। कबीर- पंथियों में इनके जन्म के विषय में यह पद्य प्रसिद्ध है- चौदह सौ पचपन साल गए, चंद्रवार एक ठाठ ठए । जंठ सुदी वरसायन को पूरनमामी निथि प्रगट भए । धन गरजे दामिनि दमक बूंदे बरपे झर लाग गए । लहर तलाब में कमल खिले तहँ कबीर भानु प्रगट हुए ॥ यह पद्य कबीरदास के प्रधान शिष्य और उत्तराधिकारी धर्मदास का कहा हुआ बताया जाता है। इसके अनुसार कबीरदास का जन्म लोगों ने संवत् १४५५ ज्येष्ठ शुक्ल पूर्णिमा चंद्रवार को माना है, परंतु गणना करने से संवत् १४५५ में ज्येष्ठ शुक्ल पूर्णिमा चंद्रवार को नहीं पड़ती। पद्य को ध्यान से पढ़ने पर संवत् १४५६ निकलता है, क्योंकि उसमें स्पष्ट शब्दों में लिखा है "चौदह सौ पचपन साल गए" अर्थात् उस समय तक संवत् १४५५ बीत गया था। ___ ज्येष्ठ मास वर्ष के प्रारंभिक मासों में है, अतएव उसके लिये चौदह सौ पचपन साल गए लिखना स्वाभाविक भी है, क्योंकि वर्षारंभ में नवीन संवत् लिखने का उतना अभ्यास नहीं रहता।