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पदावली

  मेरे तन मन लागी चोट सठौरी ।।
  बिसरे ग्यांन बुधि सब नाठी,भई बिकल मति बैौरी ॥ टेक ॥
देह बदेह गलित गुन तीनूं,चलत अचल भइ ठौरी ।
इत उत जित कित द्वादस चितवत,यहु भई गुपत उगौरी ॥
सोई पैं जांनैं पीर हमारी,जिहि सरीर यहु ब्यौरी ।
जन कबीर ठग ठग्यौ है बापुरौ,सुंनि संमानीं त्यौरी ॥३०३॥

  मेरी अंखियां जांन सुजांन भई ।
  देवर भरम सुसर संग तजि करि,हरि पीव तहां गई ।। टेक ।।
बालपनैं के करम हमारे,काटे जांनि दई।
बांह पकरि करि कृपा कीन्हीं,आप समींप लई ।।
पानीं की बूंद थें जिनि प्यंड साज्या,ता संगि अधिक करई ।
दास कबीर पल प्रेम न घटई,दिन दिन प्रीति नई ॥३०४ ॥

  हो बलियां कब देखोंगी ताहि ।
  अह निस पातुर दरसन कारनि,ऐसी ब्यापै मोहि ॥टेक।।
नैन हमारे तुम्ह कूं चांहैं,रती न मानैं हारि ।
बिरह अगिन तन अधिक जरावै,ऐसी लेहु बिचारि ।।
सुनहुं हमारी दादि गुसांई,अब जिन करहु बधीर ।
तुम्ह धीरज मैं आतुर स्वामीं,काचै भांडै नीर ॥
बहुत दिनन के बिछुरे माधौ,मन नहीं बांधै धीर ।
देह आता तुम्ह मिलहु कृपा करि,आरतिवंत कबीर ।। ३०५ ॥

  वै दिन कब आवैगें माइ।
  जा कारनि हम देह धरी है,मिलिबौ अंगि लगाइ ।। टेक, ॥
है। जांनूं जे हिल मिलि खेलं,तन मन प्रॉन समाइ ।
या कांमनां करौ परपुरन,समरथ है। रांम राइ ॥