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पदावली

मूरिख मनिखा जनम गंवाया,बर कौडी ज्यूं उहकाया ॥ •
जिहि तन धन जगत भुलाया,जग राख्यौ परहरि माया ।।
जल अंजुरी जीवन जैसा,ताका है किमा भरोसा ॥
कहै कबीर जग धंधा,काहे न चेतहु अंधा ॥ २६६ ।।

  रे चित चेति च्यंति लै ताही,
जा च्यंतत आपा पर नाहीं ॥ टेक।।
हरि हिरदै एक ग्यांन उपाया,ताथैं छूटि गई सब माया ।
जहां नाद न व्यंद दिवम नहीं राती,नहीं नर नारि नहीं कुल जाती।
कहै कबीर सरब सुख दाता,अविगत अलख अभेद विधाता ।२६७।।

. सरवर तटि हंमणी तिमा,
जुगति विनां हरि जल पिया न जाई ॥ टेक ॥
पीथा चाहै तै। लै खग मारी.रडि न सकै दोऊ पर भारी ।।
कुंभ लीयैं ठाढी पनिहारी,गुंण बिन नीर भरै कैसै नारी ॥
कहै कबीर गर एक बुधि बताई,महज सुभाइ मिले रांभ राई॥२६८॥

  भरथरी भूप भय। बैरागी,
बिरह वियोगी बनि धनि ढ़ुदै,वाकी सुरति साहिब सौ लागी।टेक।
हसती घोड़ा गांव गढ गूडर,कनड़ा पा इक आगी।
जोगी हूवा जांणि जग जाता,महर रजाणी त्यागी ॥
छत्र सिघासण चवर दुलंता,राग रंग बहु आगी।
सेज रमैंणीं रंभा होती,तासौं प्रीति न लांगी ।
सूर बीर गाढा पग रोप्या,इह बिधि माया त्यागी।
सब सुख छाडि भज्या इक साहिब,गुरु गोरख ल्यौ लागी ॥
मनसा बाचा हरि हरि भाखै,गंध्रप सुत बड भागी।
कहै कबीर कुदर भजि करता,अमर भणे अणरागी ॥२६६॥


( २६६ ) ख० प्रति में यह पद नहीं है ।