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पदावली

देवल देवल फेरी देही,नांव निरंजन कबहुँ न लेहीं ।।
चरन बिरद कासी कौं न दैहूं,कहै कबीर भल नरकहि जैहूं ॥२६०॥

  तब काहे भूलौ बन जारे,अब आयौ चाहै संगि हंमारे ॥टेक।।
जब हम बनजी लौंग सुपारी,तब तुम्ह काहे बनजी खारी ।।
जब हम बनजी परमल कसतूरी,तब तुम्ह काहे बनजी कूरी ॥
अंमृत छाडि हलाहल खाया,लाभ लाभ करि मूल गँवाया ।
कहै कबीर हंम बनज्या सोई,जाथैं आवागवन न होई ॥२६१॥

  परम गुर देखौ रिदै बिचारी,कछू करौ सहाइहं मारी ।।टेक।।
लवानालि तंति एक संमि करि,जंत्र एक भल साजा ।
सति असति कछू नहीं जानूं,जैसैं बजावा तैसैं बाजा ।।
चोर तुम्हारा तुम्हारी आग्या,मुसियत नगर तुम्हारा ।
इनके गुनह हमह का पकरौ,का अपराध हमारा ॥
सेई तुम्ह सेई हम एकै कहियत,जब आपा पर नहीं जांनां ।
ज्यूं जल मैं जल पैसि न निकसै,कहै कबीर मन मांनां ॥२६२॥

  मन रे आइर कहां गयौ,ताथैं मोहि बैराग भयौ ।। टेक ।।
पंच तत ले काया कीन्हीं,तत कहा ले कीन्हां ।
करमौं के बसि जीव कहत हैं,जीव करम किनि दोन्हां ।।
आकास गगन पाताल गगन,दसौं दिसा गगन रहाई ले ।।
अानंद मूल सदा परसोतम,घट बिनसै गगन न जाई ले ।।
हरि मैं तन है तन मैं हरि है,है पुंनि नांहीं सोई ।
कहै कबीर हरि नाम न छाडूं,सहजैं होइ सु होई ॥ २६३ ॥

  हंमारै कौंन सहै सिरि भारा,
सिर की सोभा सिरजनहारा ।। टेक ।।
टेढो पाग बड जूरा,जरि भए भसम को कूरा ॥