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पदावली

दीन भई बूझै सखियन कौं,कोई मोहि राम मिलावै। ..
दास कबीर मीन ज्यूं तलपैं,मिलैं भलैं सचुपावै ।। २८४ ॥

  जातनि बेद न जानै गा जन सोई,
सारा भरम न जांनें रांम कोई ॥ टेक ॥
चषि बिन दिवस जिसी है संझा,ब्यावन पीर न जांनैं बंझा ॥
सूझै करक न लागै कारी,बैद विधाता करि मोहि सारी ॥
कहै कबीर यहु दुग्व कास नि कहिये,
अपनें तन की आप ही सहिये ।। २८५ ॥

  जन की पीर हो राजा रांम भल जांनैं',
कहूं काहि को मांनैं ॥ टेक ।।
नैन का दुख बैंन जांनैं,बैंन का दुख श्रवनां ।
प्यंड का दुख प्रांन जांनैं,प्रांन का दुख मरनां ।।
आस का दुख प्यासा जांनैं,प्यास का दुख नीर ।
भगति का दुख रांम जांनै',कहै दास कबीर ॥ २८६ ॥

  तुम्ह विन रांम कवन सौं कहिये,
लागी चोट बहुत दुख सहिये ।। टेक ।।
बेध्यौ जीव विरह के भालै,राति दिवस मेरे उर सालै ॥
को जांनैं मेरे तन की पीरा,सतगुर सबद बहि गयौ सरीरा।
तुम्ह से बैद न हमसे रोगी,उपजी बिथा कैसें जीवै बियोगी ॥.
निस बासुरि मोहि चितवत जाई,अजहूं न आइ मिले रांम राई ।।
कहत कबीर हमकौं दुख भारी,
बिन दरमन क्यूं जीवहि मुरारी ॥ २८७ ॥


(२८५) ख० प्रति में अंतिम पंक्ति इस प्रकार है-
   लागी चोट बहुत दुख सहिये। देखो ( २८७ ) की टेक ।