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पदावली

जाति जुलाहा नांम कबीरा,बनि बनि फिरौं उदासी ।
आसि पासि तुम्ह फिरि फिरि वैसौ,एक माउ एक मासी॥२७०।।

  ताकूं रे कहा कीजै भाई,
तजि अंमृत बिषै सूं ल्यौ लाई ॥ टेक ।।
बिष संग्रह कहा सुख पाया,
रंचक सुख कौं जनम गँवाया ॥
मन बरजैं चित कह्यौ न करई,
सकति सनेह दीपक मैं परई ।।
कहत कबीर मोहि भगति उमाहा,
कृत करणीं जाति भया जुलाहा ॥ २७१ ।।

  रे सुख इब मोहि बिष भरि लागा,
इनि सुख डहके मोटे मोटे छत्रपति राजा ॥ टेक ॥
उपजै बिनसै जाइ बिलाई,संपति काहू कै संगि न जाई ।।
धन जोबन गरब्यौ संसारा,यहु तन जरि बरि है है छारा ।
चरन कवल मन राखि ले धीरा,रांम रमत सुख कहै कबीरा ॥२७२॥

 इबन रहूं माटी के घर मैं,इब मैं जाइ रहूं मिलि हरि मैं ।।टेक।।
छिनहर घर अरु झिरहर टाटो,घन गरजत कंपै मेरी छाती ।।
दसवैं द्वारि लागि गई तारी,दुरि गवन आवन भयौ भारी ॥
चहुँ दिसि बैठे चारि पहरिया,जागत मुसि गये मोर नगरिया।।
कहै कबीर सुनहु रे लोई,भांनड़ घड़ण संवारण सोई ॥२७३।।

 कबीरा बिगरया रांम दुहाइ,तुम्ह जिनि बिगरौ मेरे भाई।।टेक।
चंदन कै ढिग विरष जु भैला,बिगरि बिगरि सो चंदन हैला ।।
पारस कौं जे लोह छिवैंगा,बिगरि बिगरि सो कंचन हैला ॥