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पदावली

भेष बिबर्जित भीख बिबर्जित,बिबार्जत ड्यंभक रूपं ।
कहै कबीर तिहूं लोक बिबर्जित,ऐसा तत अनूपं ।। २२० ।।

रांम रांम रांम रमि रहिये,सापित सेती भूलि न कहियो।टेक।।
का सुनहां कौं सुमृत सुनायें,का साषित पैं हरि गुन गांये ।
का कऊवा कौं कपूर खवायें,का बिसहर कौं दूध पिलांये ॥
साषित सुनहाँ दोऊ भाई,वो नींदै वौ भौंकत जाई ।
अंमृत ले ले नींब स्यंचाई,कहै कबीर वाकी बांनि न जाई।।२२१।।

  अब न बसूं इहिं गांइ गुसाईं,
तेरे नेवगी खरं सयांनें हो रांम ॥ टेक ॥
नगर एक तहाँ जीव धरम हता,बसैं जु पंच किसानी ।
नैनूं निकट अबनूं रसनूं,इंद्री कह्या न मांनैं हो रांम ॥ .
गांई कु ठाकुर खेत कु नेपै,काइथ खरच न पारै ।
जोरि जेवरी खेति पसारै,सब मिलि मोकौं मारै हो रांम ।
खोटौ महतौ बिकट बलाही,सिर कसदम का पारै ।
बुरो दिवांन दादि नहिं लागै,इक बाँधै इक मारै हो रांम ॥
धरमराइ जब लंखा मांग्या,बाकी निकसी भारी ।
पांच किसानां भाजि गये हैं,जीव धर बांध्यौ पारी हो रांम ॥
कहै कबीर सुनहु रे संतौ,हरि भजि बाँधौं। भेरा ।
अब की बेर बकसि बंदे कौं,सब खत करौं नबेरा ॥ २२२ ।।

  ता भै थैं मन लागौ रांम तोही,
करौ कृपा जिनि बिसरौ मोही ॥ टेक ॥
  जननीं जठर सह्या दुख भारी,
सो संक्या नहीं गई हमारी ।।