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पदावली

कूड़ी करणी रांम न पावै,साच टिकै निज रूप दिखावै ॥
घट मैं अग्नि घर जल अवास,चेति बुझाइ कबीरादास ॥२०१॥
[रांग आसावरी]
 
 ऐसी रे अवधू की बांणीं,
उपरि कूवटा तलि भरि पांणीं ॥ टेक ।।
जब लग गगन जोति नहीं पलटै,
अबिनासी सूं चित नहीं चिहुटै ।।
जब लग भवर गुफा नहीं जांनैं,
तौ मेरा मन कैसैं मांनैं ।
जब लग त्रिकुटी संधि न जांनैं,
ससिहर कै घरि सूर न आनैं ।
जब लग नाभि कवल नहीं सोधै,
तौ हीरै हीरा कैसैं बेधै ।।
सोलह कला संपूरण छाजा,
अनहद कै घरि बाजैं बाजा॥
सुषमन कै घरि भया अनंदा,
उलटि कवल भेटे गोव्यंदा ।।
मन पवन जब परचा भया,
ज्यूं नाले रांषो रस मइया ॥
कहै कबीर घटि लेहु बिचारी, .
औघट घाट सींचि ले क्यारी । २०२ ॥

 मन का भ्रंम मन हीं थैं भागा,
सहज रूप हरि खेलण लागा ॥ टेक ।।
मैं तैं तैं मैं ए द्वै नांहीं,आपै अकल सकल घट मांहीं।।