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पदावली

जांणि मरै जे कोई,तो बहुरि न मरणां होई ॥
गुर वचनां मंझि समावै,तब रांम नांम ल्यौ लावै ॥
जब रांम नांम ल्यौ लागा,तब भ्रम गया भौ भागा ॥
ससिहर सूर मिलावा,तब अनहद बेन बजावा ॥
जब अनहद बाजा बाजै,तब सांईं संगि बिराजै ॥
होह संत जनन के संगी,मन राचि रह्यौ हरि रंगी ।
धरौ चरन कवल बिसवासा,ज्यूं होइ निरभै पद बासा ॥
यहु काचा खेल न होई,जन परतर खेलै कोई ॥
जब षरतर खेल मचावा,तब गगन मंडल मठ छावा ।।
चित चंचल निहचल कीजै,तब रांम रसांइन पीजै ॥
जब रांम रसांइन पीया,तब काल मिट्या जन जीया ॥
यूं दास कबीरा गावै,ताथैं मन कौं मन संमझावै ।।
मन हीं मन समझाया,तब सतगुर मिलि सचुपाया ॥१७३।।

  अवधू अगनि जरै कै काठ ।
  पूछौं पंडित जोग संन्यासी,सतगुर चीन्हैं बाट ॥ टेक ॥
अगनि पवन मैं पवन कवन मैं,सबद गगन के पवनां ।
निराकार प्रभु प्रादि निरंजन,कत रचते भवनां।
उतपति जाति कवन अंधियारा,घन बादल का बरिषा।
प्रगट्यो बोज धरनि अति अधिकै,पारब्रह्म नहीं देखा ॥
मरनां मरै न मरि सकै,मरना दूरि न नेरा ।
द्वादस द्वादस सनमुख देखें,आपें आप अकेला ॥
जे बांध्या ते छछंद मुकता,बांधनहारा बांध्या ।
बांध्या मुकता मुकता बांध्या,तिहि पारब्रह्म हरि लांधा ॥
जे जाता ते कौंण पठाता,रहता ते किनि राख्या।
अंमृत समांनां,विष मैं जांनां,विष मैं अमृत चाख्या ।।