पृष्ठ:कबीर ग्रंथावली.djvu/२१९

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पदावली

ऐसा एक अचंभा देखा,
जंबक करै केहरि सूं लेखा ।।
कहै कबीर रांम भजि भाई,
दास अधम गति कबहूँ न जाई ॥ १४५ ।।

है हरिजन थैं चूक परी,
जे कछु प्राहि तुम्हारौ हरी ॥ टेक ॥
मोर तोर जब लग मैं कीन्हां,
तब लग त्रास बहुत दुख दोन्हां ।।
सिध साधिक कहैं हम सिधि पाई,
रांम नांम बिन सबै गंवाई ।।
जे बैरागी आस पियासी,
तिनकी माया कदे न नासी ॥
कहै कबीर मैं दास तुम्हारा,
माया खंडन करहु हमारा ॥ १४६ ।।

सब दुनीं संयांनी मैं बौरा,
हम बिगरे बिगरौ जिनि भौरा ॥ टेक ॥
मैं नहीं बौरा रांम कियौ बौरा,
सतगुर जारि गयौ भ्रम मोरा ॥
बिद्या न पढूं बाद नहीं जांनूं,
हरि गुंन कथत सुनत बौरांनूं ॥
कांम क्रोध दोऊ भये बिकारा,
आपहि आप जरैं संसारा॥