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पदावली

छिटकै पवन तार जब छूटै,तब मेरौ कहा बसाई ॥
सुरझयौ सूत गुढ़ी सब भागी,पवन राखि मन धीरा ।
पंचूं भइया भये सनंमुखा,तब यहु पान करीला ॥
नांंन्हीं मैंदा पीसि लई है,छांणि लई द्वै बारा ।
कहैं कबीर तेल जब मेल्या,बुनत न लागी बारा ।। १०६ ॥

ऐसा औसर बहुरि न आवै,रांम मिलै पुरा जन पावै ॥ टेक ।।
जनम अनेक गया अरू आया,की बेगारि न भाड़ा पाया।
भेष अनेक एकधूं कैसा,नांनां रूप धरै नट जैसा ॥
दांन एक मांगौं कवलाकंत,कबीर के दुख हरन अनंत ॥ ११० ।।

 हरि जननीं मैं बालिक तेरा,
काहे न औगुंण बकसहु मेरा ॥ टेक ॥
सुत अपराध करै दिन केते,जननीं कै चित रहैं न तेते ।।
कर गहि केस करै जौ घाता,तऊ न हेत उतारै माता ।
कहै कबीर एक बुधि बिचारी,बालक दुखी दुखी महतारी।।१११।

  गोव्यं दे तुम्ह थैं डरपौं भारी ।
  सरणाई आयौं क्यूं गहिये,यहु कौंन बात तुम्हारी ॥ टेक ।।
धूप दाझतैं छांह तकाई,मति तरवर सचपाऊं।
तरवर मां ज्वाला निकसै, तो क्या लेइ बुझाऊ॥
जे बन जलै त जल कूं धावै,मति जल सीतल होई ।
जलही मांहि अगनि जे निकसै,और न दूजा कोई ।।
तारण तिरण तिरण तूं तारण,और न दूजा जांनौं ।
कहै कबीर सरनांई आयौं,आंन देव नहीं मांनौं ॥ ११२ ॥