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पदावली

लेट्यौ भोमि बहुत पछितांनौं,
लालचि लागौ करत धनीं ।।
छूटी फौज आंनि गंढ घेरयौ,
उड़ि गयौ गूडर छाड़ि तनीं ।
पकरयौ हंस जम ले चाल्यौ,
मंदिर रोवै नारि धनीं ।।
कहै कबीर रांम किन सुमिरत,
चीन्हत नाहिन एक चिनीं ।
जब जाइ आइ पड़ासी घेरपौ,
छाडि चल्यौ तजि पुरिष पनीं ।। ६६ ।।

सुवटा डरपत रहु मेरे भाई,ताहि डराई देत बिलाई ॥
तीनि बार रूंधै इक दिन मैं,कबहूं क खता खवाई ॥ टेक ॥
या मं जारी मुगध न मांनैं,सब दुनियां डहकाई।
राणां राव रंक कौं ब्यापै,करि करि प्रीति सवाई ।।
कहत कबीर सुनहु रे सुवटा,उबरै हरि सरनांई।
लाषौं मांहिं तैं लेत अचांनक,काहू न देत दिखाई ॥ ६७ ॥

का मांगू कुछ थिर न रहाई,
देखत नैंन चल्या जग जाई ।। टेक ॥
इक लष पूत सवा लष नाती,ता रावन घरि दीवा न बाती ॥
लंका सा कोट समंद सी खाई,ता रावन की खबरि न पाई ॥
आवत संग न जात संगाती,कहा भयौ दरि बांधे हाथी॥
कहै कबीर अंत की बारी,हाथ झाड़ि जैसें चले जुवारी ॥६८॥

रांम थोरे दिन कौं का धन करनां,
धंधा बहुत निहाइति मरनां । टेक ।।
कोटी धज साह हस्ती बंध राजा,क्रिपन को धन कौंनैं काजा ।।