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पदावली

जब लग ऊंच नीच करि जांनां,ते पसुवा भूले भ्रंम नांनां ।।
कहि कबीर मैं मेरी खोई,तबहि रांम अवर नहीं कोई ॥ ६६ ॥

बोलनां का कहिये रे भाई,बोलत बोलत तत नसाई ॥ टेक ।।

बोलत बोलत बढै विकारा,बिन बोल्यां क्यूं होइ विचारा ॥
संत मिलै कछु कहिये कहिये,मिलै असंत मुष्टि करि रहिये ।
ग्यांनीं सू बोल्यां हितकारी,मूरिख सूं बोल्यां झष मारी ।।
कहै कबीर आधा घट डोलै,भरया होइ तौ मुषां न बोलै ॥ ६७ ॥

बागड़ देस लूवन का घर है,
तहां जिनि जाइ दाझन का डर है ।। टेक ।।

सब जग देखौं कोई न धीरा,परत धूरि सिरि कहत अबीरा ।।
न तहां सरवर न तहां पांणीं,न तहां सतगुर साधू बांणां ।।
न तहां कोकिल न तहां स्वा,ऊंचै चढ़ि चढ़ि हंसा मूवा॥
देस मालवा गहर गंभीर,उग डग रोटी पग पग नीर ।।
कहै कबीर घरहीं मन मांना,गृंग का गुड़ गूंगै जांनां ।। ६८ ॥

अवधू जोगी जग थैं न्यारा ।
मुद्रा निरति सुरति करि सींगी,नाद न षंडै धारा ॥ टेक ॥

बसै गगन मैं दुनी न देखे,चेतनि चौकी बैठा।
चढ़ि अकास पासण नहीं छावै,पीवै महा रस मींठा ।
परगट कंथां मांहैं जोगी,दिल मैं दरपन जोवै ।
सहस इकीस छ सै धागा,निहचल नाकै पावै ॥
ब्रह्म अगनि मैं काया जारै,त्रिकुटी संगम जागै ।
कहै कबीर सोई जोगेखर,सहज सुंनि ल्यौ खागै ॥ ६९ ॥