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पदावली

नां कतहुं चलि जाइये,ना सिर लीजै भार ।
रसनां रसहि बिचारिये,सारंग श्रीरंग धार रे ।।
माधैं सिधि ऐसी पाइये,किंवा होइ महोइ ।
जे दिठ ग्यांन न ऊपजै,तौ अहटि रहै जिनि कोइ रे ।।
एक जुगति एकै मिलै,किंवा जोग कि भोग ।
इन दून्यूं फल पाइये,रांम नांम सिधि जोग रे ।।
प्रेम भगति ऐसी कीजिये,मुखि अंमृत बरिपै चंद ।
आपही आप बिचारिये,तब केता होइ अनंद रे ।।
तुम्ह जिनि जानौं गीत है,यहु निज ब्रह्म विचार ।
केवल कहि समझाइया,आतम साधन सार रे॥
चरन कवल चित लाइये,रांम नांम गुन गाइ ।
कहै कबीर संमा नहीं,भगति मुकति गति पाइ रे ॥ ५ ॥

अब मैं पाइबौ रे पाइबौ ब्रह्म गियान,
सहज समाधें सुख मैं रहिबा,काटि कलप बिश्राम।।टेक॥
गुर कृपाल कृपा जब कीन्हीं,हिरदै कंबल बिगासा।
भागा भ्रम दसौं दिस सूझना,परम जोति प्रकासा ॥
मृतक उठ्या धनक कर लीयै,काल अहेड़ी भागा।
उदया सूर निस किया पयांना,सोवत थैं जब जागा ॥

(५) इसके प्रागे ख. प्रति में यह पद है-
अब मैं रांम सकल सिधि पाई
आन कहूं तौ रांम दुहाई ॥ टेक ॥
इह बिधि बासि सबै रस दीठा,रांम नांम सा और न मीठा।
और रस है कफ गाता,हरिरस अधिक अधिक सुखराता ॥
दूजा बणज नहीं कछु बापर,रांम नांम दोऊ तत आषर ।
कहै कबीर जे हरिरस भोगी,ताकी मिल्या निरंजन जोगी ॥ ६ ॥