[राग गौड़ी]
दुलहनी गावहु मंगलचार,
हम घरि आये हो राजा रांम भरतार || टेक ।।
तन रत करि मैं मन रत करिहूँ,पंचतत बराती।
रांमदेव मोरै पाहुनैं आयें,मैं जोबन मैंमाती ।।
सरीर सरोवर बेदी करिहूँ,ब्रह्मा बेद उचार ।
रांमदेव संगि भांवरि लैहूँ,धंनि धंनि भाग हमार ॥
सुर तेतीसूं कौतिग आये,मुनियर सहम अठ्यासी ।
कहैं कबीर हंम ब्याहि चले हैं,पुरिष एक अबिनासी ॥१॥
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बहुत दिनन थैं मैं प्रीतम पाय,
भाग बड़े घरि बैठें आये ।। टेक ।।
मंगलचार मांहिं मन राखौं,राम रसांइण रसनां चाषौं ।
मंदिर मांहिं भया उजियारा,ले सूती अपनां पीव पियारा ॥
मैं रनि रासी जे निधि पाई,हमहि कहा यहु तुमहि बड़ाई।
कंहै कबीर मैं कछू न कीन्हां,सखी सुहागरांम मोहि दीन्हां॥२॥
अब ताहि जान न देहूं राम पियारे,
ज्यूं भावै त्यूं होह हमारे । टेक ॥
बहुत दिनन के बिछुरे हरि पायें,भाग बडे घरि बैठें आये।
चरननि लागि करौं बरियाई,प्रेम प्रीति राखौं उरझाई ।।
इत मन मंदिर रहौ नित चोषै,कहै कबीर परहु मति घोषै ॥२॥
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