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. बालग-कोलि 'बालम विचित्र स्याम श्राये मेरे मया ,फरि, .:. ओऊ तिया आयो-यैठो उनही, को घर है। पाये अरु पाये श्री छपाये छतिया, लगाये, .काम ते. निडर म य फाको डरु: है ।। १२६ ॥ देख्यो है कन्हाई तय, ऐसी खै के आई तो में, . कोटिक उपाय लाय जतननु ज्याई है। 'पालम' कहै,हो प्राजु वैठे ही गिरी ही सुनि, कहूँ नेरे धैरी प्रानि यांसुरी बजाई है। मेरे ऐसी, मुरि, ही मरी ह जिये: छुये छिनु, । मरे. ते कठिन - यह कैसी मुरछाई है। मारे डारे,बिस ज्यों विसारे यान मारी, जानु झारे,हन माने -मानो वारे कारे:खाई है ॥१२७॥ आवत हो, लखो बाल अतिही विकल कछु, तन न. सँभारै जानो कान्ह देखि - आई है। बंसी को सबद किधी विसको घसेरो सेप', किधों वाँस विसभर ताके छौना खाई है। मोपै मुरी मंत्र हो, सजीधन ,धनन्तर को, .. ...ताह.. पढ़ि दोन्हे एक लहरौन; पाई है। नाँउ सुनि लाल- तव मैर • सो जगत श्रव. :- । रमु सो पियायः कोहूँ जतननु ज्याई है ॥१२॥ १-वारे कारे साई है -साँप के यम्चे ने काट पाया है। २-विसर-विषधर ( सप) .- . '-" - ~ ~-