यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

१५ मानिनी पाली चलि चुनरि.पहिरि हरियारी भूमि, . • : तेरे . चमकत चपलाऊ चपि जाहहै। औरनि के आये पनि और श्राइहै -सुपुनि, .:- हो तो आइहाँ न.यह घेरी पनि थाइहै ॥२३n जागन हे जोन्ह सोरी लागन देरात जैसे, — , जात सारी सेत में संघात को न जानिह। श्रथये की मोर परी साथ लीजे.मो. सीनागि, :: आतुरी न होइ, "यह चातुरी की खानिदै। घूघट ते 'सेख' 'मुग्न। जोति न . घरैगी छिनु, .. . झीनो पट. न्यारिये. झलक पहचानिह । तू तो जानै छानी' पैनं छानी या रहेगी योर, . . छानी छपि नेनन की काको 'लोह-छानि ॥२४॥ । मानिनी ..... समुद को पार है - सुभूमिको चार है पे, प्रीति को न पार चार कौन विधि कीजिये। 'लेख, कहै देखे अनदेख्योई फरत केहूँ,

.. अंक भरि भेटे' यियोग रस भीजिये।

1-छानोमीकी हुई। धानीबन छन कर निकली हुई। ३-छानिई-पियेगी ।। ४-कार-ओर, अंत। ' '