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१३० धालम-कोलि चन्द्र कलंक ; : ... .. [ ३५१ ] . विधु प्रह्म कुलाल को चक्र कियो मधिराजति कालिमा रेनु लगी छवि धौं सुरमीर पियूष की कीच कि वाहन पोट की छाँह खगी कवि 'बालम' रैनि सँजोगिनि ह्वे पिय के सुख संगम रंग पगी गये लोचन चूड़ि चकोरनि के सुमनो पुनरीनि की पाँति जगी [ ३५२ ] घिर फरम थापि रसातल में विधि जानि सुती त्रिकुटी है ठटो धरनीधर मत्य समत्य फरी सरिता मर सिंधु सनेह तटी 'पालम' के गुन मेस मनो रवि प्रात को दोपलिखा जो जटी लिहि धूम धुके दुति फजल की अजहूँ नम कालिमा लै.प्रगटी [ ३५३ ]. औषधिनाय विरोध गुनो गुन मोधि तमोरस भेदं विचारा 'आलमा पूरि धरी धरिया रयि कोनो नरे नप देश पसारा पागि दई प्रथये' अरनो अति फूष्टि के जंगयो उड़ि पारा रैनि भरी कंजरी पियुरी जनु ई फन धातु लगे मदि तारा १- प्रथये मानि-सूर्यास्त समय की लाठिमा। -