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[ २७५ } फोन्हें प्रिया पनि विलसैं सखो साखि सहेट घदी जिहि कार्छ. कयि ओलम मोद विनोदनि सो तनस्वेद समै मदनजल ताछे. तिय भील जंगम्मगह बिदुली अल सुकियानन ऊपर पार्छ त्रासते है ग्रसिये ससि संगम भानु प्यो सुरभानु के पाछे [ २७६ ] यनिता पनि वेप चली यन को विहरै जहँ कान्ह विहारनि सों अलकावलि स्वेद प्रसून लसैं प्रगटे उड़ ज्यो तमधारनि सौं तिलफेंटुति चारु मृगम्मदसों छषि छोर लंगे हग तारति सौ. कवि 'बालम' सोभित कंजाउभै अध भुवभृग के भारनि सो [ २७७ ] सांसमै निकसी घर सो'चुनरी पहिरे रति रूप सवाये "पालमा ले संजनीतिहि को गुरु बैठे की संक सकोच गँवायः नूपुरं को धुनि धाई कै 'कान्हर रीमिरहै सखी यो रिझवाये. चूंघट ही मह नेकुंचितै हँसि गोहँ चली तियभौंह नचाये [ २ ] पले अली लखि हाई हो लाल यहै सुनि घाल सबै दुख मोचे है सकुची गुरु नारिन में अनवैननहीं चित. सो चित रोचै गुरु ठौर उटी बहराइ फै.याल रह्यो न पस्यो अति.लोचन.लोचै घुट सो पलकोकराज्यो.पंसरै फिरि एकहित्यारं सकोचै --सुरभानु राह। - - - - - - - - - - - - - - - -- - - - - - - - - - -