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पछद नं०२४ सामने है मेरे दा, कविता साहित्य से भी अच्छी जानकारी रखते थे और सड़ी योनी में भी कविता करने के पक्षपाती थे ( देखिये इंद्र नम्बर २६६ से २७३ तक)। चंद नम्बर १६ में सेख ने सर्वनाम और मिया के पैसे सप प्रयुक्त किये है जिनसे. प्रत्यत.मालूम होता है कि यह पंजाय नियासिनी थी। अनेक छंदों से उसकी कृष्णप्रति अटल भक्ति भली भाँति प्रगट है ( देखिये छंद नं०२४८, २४६ पुस्तक आपके सामने है मेरे कहने को कुछ अावश्यकता नदी, कविता आपसे आप रचयिता की.प्रशंसा करा लेगी। हाँ। अपने विषय में मुझे इतना कहना है कि मैंने इस पुस्तक का प्रफ देना है..टिप्पनियाँ लिखी है और यत्रतत्र लिपि. दोपों का संशोधन किया है। तो,मी जहाँ जहाँ छंदों का अर्थ समझ में नहीं पाया यहाँ मैंने पाठ ज्यों का त्यों रहने दिया है। यथाशक्ति मैंने उद्योग किया है, पर मुझे संतोप नहीं हुआ कि पुस्तक शुद्ध रूप से निकली है ।- पाठकों से निवेदन है कि उनको जोश्रुटियाँ वा अशुद्धियाँ मालूम हो उनसे मुझे सूचित करने की कृपा करें तो अगले संस्करण में संशोधन कर दिया जायगा। ... ... . .. .... हो सका तो महिराम कृत: सतसई और सेनापति कृत 'कवित्त-रत्नाकर' भी शोव हो. इसी सासे . सेवा में प्रस्तुत. फरूँगा। पर यह यात पाठकों की कृपा पर ही निर्भर है आशा है कि हिन्दी प्रेमो इसे अपनाकर प्रकाशक का उत्साह बढ़ावेंगे। . • श्रीरामनवमी, } सं० १६७६ . ...: विनीत '; 'काशी .....: लाला भगवानदीन, ..