यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

तात्पर्य यह कि बालम और सेख के बहुत से छंद इसमें नहीं मिलते। इसका कारण यही जान पड़ता है कि वे छंद इस हस्तलिपि के बाद की रचना है। यह हस्तलिपि बालम के जीवन काल में ही उनके किसी शिष्य वा भक्त द्वारा लिखी गई है। अतः हमें तो अत्यन्त प्रमाणिक अँचती है। जीवनवृत्त लोग कहते हैं कि 'पालमा कवि जाति के ग्राह्मण थे, और , 'सेख' रंगरेजिन के प्रेम में फंसकर मुसल्मान हो गये थे।' सच्चे साहित्यमर्मज्ञों का मत है कि सच्चे फाषियों का कोई धर्म नहीं, चे तो धर्म के दिखाऊ बंधनों को तोड़कर सन्चे प्राकृतिक सौंदर्यमय.प्रेम-पथ के पथिक होते हैं। सभी देशों और सभी कालों में ऐसे कयि होते आये हैं। पालम भी वैसे ही थे। ' ' ___ 'सेख' केवल रंगरेजिन ही न थी वरन् ऐसा जान पड़ता है कि वह सच्चे प्रेमरंग में स्वयं भी रंगी हुई थी। पड़ी प्रति. भावाली और हाज़िर जवाय थी। सेख से उत्पन्न बालम का एक पुत्र भी था जिसका नाम 'जहाना था। ' कहते हैं एक बार आलम के आश्रयदाता शाहजादा मुअ. जम ( औरंगजेब के पुत्र)ने मजाक में 'संख' से पूछा कि "क्या बालम की बीयी प्रापही है ?" 'सेख ने हँसकर तुरंत जवाब दिया था "हाँ हुजरे ! 'जहाना की माँ मैं ही हूँ।" ऐसी प्रत्युत्पन्न मतिवाली और ऐसी प्रतिभावाली स्त्री पर रोझ कर पालम ने कुछ बुरा नहीं किया था। प्रत्येक सशा कवि ऐसोखी पर निछावर होना अपना सौभाग्य समझेगा। आलम ने 'रेखता' नाम से कुछ ऐसे कवित्त लिखे हैं जिन से जान पड़ता है कि पालम जी फारसी भाषा और उसके