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आँँधी

आँँधी सिर में दर्द है भीतर सो रही है । अहमद की श्राखों में पशुता नाच उठी। शरीर में एक सनसनी का अनुभव करते हुए उसने इरावती का हाथ पकड़ कर कहा-बैठो न इरा ! तुम थक गई हो।

आप शर्बत पी लीजिए । मैं जाकर फीरोजा को जगा हूँ। श्रीरोज़ा! फीरोजा के हाथ मैं बिक गया हूँ क्या इरावती! तुम-आह !

इरावती हाथ छुड़ाकर हटनेवाली ही थी कि सामने फीरोजा खड़ी थी। उसकी श्राखों में तीन वाला थी। उसने कहा-मैं बिकी हूँ अहमद । तुम भला मेरे हाथ क्यों बिकने लगे। लेकिन तुमको मालूम है कि तुमने अभी राज तिलक को मेरा दाम नहीं चुकाया इसलिए मैं जाती हूँ।

अहमद हत-बुद्धि | निष्पम ! और फीरोजा चली । इरावती ने गिड़गिड़ा कर कहा-बहन मुझे भी न लेती चलोगी ?

फीरोना ने घूमकर एक बार स्थिर दृष्टि से इरावती की ओर देखा और कहा-तो फिर चलो। दोनों हाथ पकड़े सीढी से उतर गई।

बहुत दिनों तक विदेश म इधर-उधर भटकने पर बलराज जब से लौट आया है तब से च द्रभागा तट क जाटों म एक नयी लहर था गई है। बलराज ने अपने सजातीय लोगों को पराधीनता से मुक्त होने का संवेश सुना कर उहे सुतान सरकार का अबाध्य बना दिया है । उद्दंड जाटों को अपने वश म रखना उन पर सदा फौजी शासन करना सुतान के कर्मचारियों के लिए भी बड़ा कठिन हो रहा था।

इधर फीरोजा के जाते ही गृहमद अपनी कोमल वृत्तियों को भी