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आँँधी
 

जौहरी के गले पर तलवार पड़ा ही चाहती है और इरावती इसे छोड़ दो न मारो कहती हुई तलवार के सामने आ गई थी । बलराज ने कहा-ठहरो निया तगीन । दूसरे ही क्षण नियाल्तगीन की कलाई बलराज की मुठ्ठी में थी। निया तगीन ने कहा-धोखेबाज काफिर यह क्या कई तुर्क पास आ गये थे। फीरोजा का भी मुख तमतमा गया था बलराज ने संबल होने पर भी बड़ी दीनता से कहा-फीरोजा यही इरावती है ।फीरोजा हँसने लगी। इरावती को पकड़ कर उसने कहा नियाल्तगीन । बलराज को इसके साथ लेकर मैं चलती हूँ तुम आना। और इस जौहरी से तुम्हारा नुकसान न हो तो न मारो। देखो बहुत से धुड़सयार ना रहे हैं । हम सबों का चलना ही अच्छा है।

नियाल्तगीन ने परिस्थिति एक क्षण में ही समझ ली। उसने जौहरी से पूछा तम्हारे घर में दूसरी ओर से बाहर जाया जा सकता है।

हाँ!- कँपे करठ से उत्तर मिला।

अच्छा चलो तुम्हारी जान बच रही है। मैं इरावती को ले जाता हूँ।कह कर निया तगीन ने एक तुर्क के कान में कुछ कहा और बलराज को आगे चलने का संकेत कर के इरावती और फीरोजा के पीछे धनदत्त के घर में घुसा । इधर तुर्क एकत्र होकर प्रत्यावर्तन कर रहे थे। नगर की राजकीय सेना पास आ रही थी।

चंद्रभागा के तट पर शिविरों की एक श्रेणी थी। उसके समीप ही घने वृक्षों की झुरमुट में इरावती और फीरोजा बैठी हुई सायंकालीन गंभीरता की छाया में एक दूसरे का मुंह देख रही हैं। फीरोजा ने कहा- बलराज को तुम प्यार करती हो।