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दासी
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दासी जाने लगी थी कि दूकानदार ने कहा लेना न देना झूठमूठ तग करना । कभी देखा तो नहीं । कंगालों की तरह जैसे श्राखों से देख कर ही खा जायगी । फीरोजा घूम कर खड़ी हो गई। उसने पूछा-क्या बकते हो ?--जा जा तुर्कीस्तान के जगलों में भेड़ चरा । इन कपड़ों का लेना तेरा काम नही सटी हुई दूकान से जौहरी अभी कुछ बोलना ही चाहता था कि बलराज ने कहा- चुप रह न तो जीभ खींच लूँगा ।

ओहो । तुर्की गुलाम का दास तू भी । अभी इतना ही कपड़े वाले के मुँह से निकला था कि नियास्तगीन की तलवार उसके गले तक पहुंच गई। बाजार म हलचल मची। नियाल्तगीन के साथी इधर-उधर बिखरे ही थे। कुछ तो वहीं आ गये। औरों को समाचार मिल गया । झगड़ा पढने लगा निया तगीन को कुछ लोगों ने घेर लिया था कि तु तुका ने उसे छीन लेना चाहा। राजकीय सनिक पहुँच गये। निया तगीन को यह मालूम हो गया कि पड़ाव पर समाचार पहुच गया है। उसने निर्भीकता से अपनी तलवार घुमाते हुए कहा-अच्छा होता कि झगड़ा यहीं तक रहता नहीं तो हम लोग तुर्फ हैं।

तुर्कों का आतंक उत्तरीय भारत म फैल चुका था। क्षण भर के लिए सनाटा तो हुश्रा पर तु वणिक के प्रतिशोध के लिए नागरिका का रोष उगल रहा था। राजकीय सैनिकों का सहयोग मिलते ही युद्ध आरम्भ हो गया अब और भी तुर्क श्रा पहुंचे थे। नियाल्तगीन हँसने लगा। उसने तुर्की म संकेत किया । यनारस का राजपथ तुर्कों की तलवार से पहली बार आलोकित हो उठा।

निया तगीन के साथी सघटित हो गये थे। व केवल युद्ध और आम रक्षा ही नहीं कर रहे थे बहुमूल्य पदार्थों की लूट भी करने लगे। बलराज स्तध था। वह जैसे एक स्वप्न देख रहा था। अकस्मात् उसके कानों म एक परिचित स्वर सुनाई पड़ा। उसने घूम कर देखा-