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अप्रैल की निर्वाचित पुस्तक
निर्वाचित पुस्तक

सप्ताह की पुस्तक
सप्ताह की पुस्तक

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सप्तसरोज प्रेमचंद द्वारा रचित सात कहानियों का संग्रह है। इसका प्रकाशन सन् १९३८ में काशी के हिन्दी पुस्तक एजेंसी द्वारा किया गया था।


"बेनीमाधव सिंह गौरीपुर गांवके जमींदार और नम्बरदार थे। उनके पितामह किसी समय बड़े धन्यधान्य सम्पन्न थे। गांव का पक्का तालाब और मन्दिर, जिनकी अब मरम्मत भी मुश्किल थी, उन्हींके कीर्त्तिस्तम्भ थे। कहते हैं, इस दरवाजेपर हाथी झूमता था, अब उसकी जगह एक बूढ़ी भैंस थी, जिसके शरीरपे पंजरके सिवा और कुछ शेष न रहा था। पर दूध शायद बहुत देती थी, क्योंकि एक-न-एक आदमी हांडी लिये उसके सिरपर सवार ही रहता था। बेनीमाधव सिंह अपनी आधीसे अधिक सम्पत्ति वकीलोंकी भेंट कर चुके थे।..."पूरा पढ़ें)


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पूर्ण पुस्तक
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कुछ विचार प्रेमचंद के चुने हुए निबन्धों का संग्रह है। इसका प्रकाशन सरस्वती-प्रेस, बनारस द्वारा १९३९ ई॰ में किया गया था।

"हम साहित्यकारों में कर्मशक्ति का अभाव है। यह एक कड़वी सचाई है; पर हम उसकी ओर से आँखें नहीं बन्द कर सकते। अभी तक हमने साहित्य का जो आदर्श अपने सामने रखा था, उसके लिए कर्म की आवश्यकता न थी। कर्माभाव ही उसका गुण था; क्योंकि अक्सर कर्म अपने साथ पक्षपात और संकीर्णता को भी लाता है। अगर कोई आदमी धार्मिक होकर अपनी धार्मिकता पर गर्व करे, तो इससे कहीं अच्छा है कि वह धार्मिक न होकर 'खाओ-पिओ मौज करो' का क़ायल हो। ऐसा स्वच्छन्दाचारी तो ईश्वर की दया का अधिकारी हो भी सकता है; पर धार्मिकता का अभिमान रखने वाले के लिए इसकी सम्भावना नहीं।
जो हो, जब तक साहित्य का काम केवल मन-बहलाव का सामान जुटाना, केवल लोरियाँ गा-गाकर सुलाना, केवल आँसू बहाकर जी हलका करना था, तब तक इसके लिए कर्म की आवश्यकता न थी। वह एक दीवाना था जिसका ग़म दूसरे खाते थे; मगर हम साहित्य को केवल मनोरंजन और विलासिता की वस्तु नहीं समझते। हमारी कसौटी पर वही साहित्य खरा उतरेगा, जिसमें उच्च चिन्तन हो, स्वाधीनता का भाव हो, सौन्दर्य का सार हो, सृजन की आत्मा हो, जीवन की सचाइयों का प्रकाश हो,––जो हममें गति और संघर्ष और बेचैनी पैदा करे, सुलाये नहीं; क्योंकि अब और ज़्यादा सोना मृत्यु का लक्षण है।"...(पूरा पढ़ें)


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सहकार्य

इस माह शोधित करने के लिए चुनी गई पुस्तक:
  1. Kabir Granthavali.pdf ‎[९२१ पृष्ठ]
  2. जायसी ग्रंथावली.djvu ‎[४९८ पृष्ठ]
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रचनाकार
रचनाकार

अयोध्यासिंह उपाध्याय 'हरिऔध' (15 अप्रैल 1865 — 16 मार्च 1947) हिंदी भाषा के कवि, निबंधकार तथा संपादक थे। विकिस्रोत पर उपलब्ध उनकी रचनाएँ:

  1. प्रियप्रवास (1914), खड़ी बोली हिंदी का पहला महाकाव्य जो कृष्ण के गोकुल से मथुरा प्रवास की घटना पर आधारित
  2. चोखे चौपदे (1924), हरिऔध हजारा नाम से भी प्रसिद्ध इस पुस्तक में एक हजार चौपदे हैं
  3. वेनिस का बाँका (1928), अंग्रेजी नाटक मर्चेंट ऑफ वेनिस का अनुवाद
  4. रसकलस (1931), मुक्तकों का संग्रह
  5. रस साहित्य और समीक्षायें (१९५६), आलोचनात्मक निबंधों का संग्रह
  6. हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास

आज का पाठ

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उर्दू, हिन्दी और हिन्दुस्तानी प्रेमचंद द्वारा रचित साहित्य का उद्देश्य का एक अंश है जिसका प्रकाशन जुलाई १९५४ ई॰ में इलाहाबाद के हंस प्रकाशन द्वारा किया गया था।

"यह बात सभी लोग मानते हैं कि राष्ट्र को दृढ और बलवान बनाने के लिए देश में सांस्कृतिक एकता का होना बहुत आवश्यक है। और किसी राष्ट्र की भाषा तथा लिपि इस सांस्कृतिक एकता का एक विशेष अंग है। श्रीमती खलीदा अदीब खानम ने अपने एक भाषण में कहा था कि तुर्की जाति और राष्ट्र की एकता तुर्की भाषा के कारण ही हुई है। और यह निश्चित बात है कि राष्ट्रीय भाषा के बिना किसी राष्ट्र के अस्तित्व की कल्पना ही नहीं हो सकती। जब तक भारतवर्ष की कोई राष्ट्रीय भाषा न हो, तब तक वह राष्ट्रीयता का दावा नहीं कर सकता।..."(पूरा पढ़ें)


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