ग्रन्थावलि]
'शब्दार्थ--जानि=जान्कर।घडियाल=बडा घटा। धौलहर=महल।
सन्दर्भ--कबीर कहते है कि आवागमन से मुक्ति के लिए राम-नाम का भजन करो।
भावार्थ--'न्र्सिह्,माधव,मधुसूदन,बनवारी आदि राम ही है,एसा समझ कर तुम रम का भजन करो।(विभिन्न अवतार उस एक परम तत्व के ही अभिव्यक्त रूप है ।)बजने वाला घटा अर्थात् प्रति पल व्यतीत होता हुआ समय प्रतिदिन यही ज्ञान देता है कि यह सन्सार घुऍ के महल के समान मिथ्या एवं नश्वर है। जैसे नदी नाव का सयोग क्षणिक होता है,उसी प्रकरा माता, पिता एवं पुत्र का संयोग आकस्मिक एवं क्षणिक है ।ये सारे सम्बन्ध उसी प्रकार मिथ्था,नीरस एव भ्रम है जिस प्रकार तोते क्के लिये सेमर क फल।यह संसार जल के बुल्बुले के समान क्षणिक एवं नश्वर है। कबीरदास कह्ते है कि जीभ से राम-नाम कहने क अभ्यास बनए रखो जिस्से गर्भ-वास (पुनर्जन्म) से मुक्ति प्राप्त हो सके।
अलंकार--(१) उल्लेख एक ही तत्त्व् का विभिन्न नामों का वर्णन है। (२)उपमा-धुवा जल बुदबुदा ऐसौ। (३)रूपक धूवा संसार। (४)उदाहरण-जैसे अग।
विशेष--(१)संसार की नश्वरता एव निस्सारता क प्रतिपादन है।
(२)निर्वेद सचारी की व्यजना है। (३)ग्यान कथै गरिघार-लक्षण और मानवीकरण है। (४)सम्पूर्ण देवताओ में वही एक परमतत्व व्याप्त है।यह अभेध बुद्धि ही भारतीय द्रुष्टि की वीशेपता है। कबीर ने उपासना के क्षेत्र मे इसी भरतीय पद्धति को अपनाया है। विभिन्न पौराणिक अवतारो के नामो का वर्णन यह प्रकट कराता है कि कबीर के ऊपर जन-मानस को मान्य पोराणिक संस्क्रुति का व्यापक प्रभाव था। (६)घूवा घोलह हैं संसार-समभाव के लिये देखें- राम जपु,राम जपु,राम जपु बावरे। जग नभ वाटिका रही हैं फलि फूलि रे। धुवा कैसे धौरहर देखि तू न भूलि रे। (गोस्वामि तुलसीदास) (७)नल दुल मलफ लकीर--पाठ अस्पष्ठ है।हमने इस पंक्ति का अर्थ डा० माताप्रसाद गुप्त तथा डा० भगवत्स्वरूप मिश्र द्वारा किए अर्थों के आधार पर लिख दिया हैं। (३७५) रसनां रांम गुन रमि रस पीजै, 'गुन अतीत निरमोलिक लीजै॥टके॥