एक ग्रन्थ लिखा है. उसमें काव्य के दसों अङ्गों का विशद वर्णन है इनके और भी ग्रन्थ बतलाये जाते हैं । जिनमें ‘संग्रह-सार', 'युक्ति-तरंगिनी, और 'नख शिख' अधिक प्रसिद्ध हैं। ये जयपुर के महाराज जयसिंह के पुत्र रामसिंह के दरबारी कवि थे। अपने ‘रस रहस्य' नामक ग्रन्थ में इन्होंने रामसिंह को बहुत अधिक प्रशंसा की है। इनकी अधिकांश रचना की भाषा साहित्यिक ब्रजभाषा है। जिसमें बड़ी ही प्राञ्जलता और मधुरता है । किंतु कुछ रचनायें इनका ऐसी भी हैं जिनमें खड़ी बोली के साथ फारसी, अरबी शब्दों का प्रयोग अधिकता से मिलता है। इससे पाया जाता है कि इन्हों ने फारसी भी पढ़ी थी । इन्होंने ऐसी रचना भी की है जिस में प्राकृत के शब्द अधिकता से आये हैं । इन तीनों के उदाहरण क्रमशः नीचे दिये जाते हैं:-
१-ऐसिय कुञ्ज बनै छवि पुज रहें
अलि गुंजत यों सुख लीजै ।
नैन विसाल हिये बनमाल बिलोकत
रूप सुधा भरि पीजै ।
जामिनि जाम की कौन कहै जुग
जात न जानिये ज्यों छिन छीजै ।
आनँद यों उमग्यो हो रहैं पिय
मोहन को मुख देखिबो कीजै ।
२-हूँ मैं मुशताक़ तेरी सूरत का नूर देखि
दिल भरि पूरि रहै कहने जवाब से•।
मेहर का तालिब फ़क़ीर है मेहरेबान
चातक ज्यों जीवता है स्वातिवारे आब से।
तू तो है अयानी यह खूबी का खजाना तिसे
खोलि क्यों न दीजैसेर कीजिये सवाब से ।