है, इसलिए हमें रुके नहीं रहना है। हमें यह जानकर खुशी हुई है कि श्री मुहम्मद कासिम आँगलियाने, जिन्होंने अनुमतिपत्रके लिए आवेदन दे दिया था, उसे वापस ले लेनेका इरादा किया है। इसी प्रकार श्री उस्मान अहमदका भी इरादा है। ये बातें हमें फिरसे ऊपर उठानेवाली हैं। ऐसा ही प्रत्येक भारतीयको करना चाहिए। विचार करके देखें तो अनुमतिपत्र कार्यालयके साथ सम्बन्ध रखनेसे भी क्या लाभ होगा? दो-चार भारतीय ट्रान्सवालमें आये तो क्या और नहीं आये तो क्या? उस कार्यालयसे सम्बन्ध रखकर समूचे भारतीय समाजको जो नुकसान होनेवाला है उसे ध्यानमें लेते हुए हम मानते हैं कि ब्रिटिश भारतीय संघकी सूचनाके अनुसार प्रत्येक भारतीय उक्त कार्यालयका बहिष्कार करेगा।
इस विषयपर विचार करते हुए, युवक भारतीयोंको और उन लोगोंको, जिनका अनुमतिपत्र कार्यालयसे सम्बन्ध है, चाहिए कि वे स्वयं अपना सम्बन्ध तोड़कर औरोंको भी सम्बन्ध तोड़नेके लिए समझायें। दो-चार व्यक्ति उस कार्यालयके दरवाजेके पास बारी-बारीसे खड़े रहकर, जो लोग वहाँ जाना चाहते हों, उन्हें समझा सकते हैं।
- [गुजराती से]
- इंडियन ओपिनियन, १८-५-१९०७
४७५. शिक्षा किसे कहा जाये?
पाश्चात्य देशोंमें शिक्षाका इतना अधिक मूल्य होता है कि बड़े शिक्षकोंका बहुत ही सम्मान किया जाता है। इंग्लैंड में आज भी सैकड़ों वर्ष पुरानी पाठशालाएँ हैं, जहाँसे बड़े प्रसिद्ध प्रसिद्ध लोग निकले हैं। इन प्रसिद्ध शालाओंमें एक ईटनकी पाठशाला है। उस शालाके पुराने विद्यार्थियोंने कुछ महीने पहले वहाँके प्रधान अध्यापक डॉ॰ वेरका, जिनका सारे अंग्रेजी राज्यमें नाम है, अभिनन्दन किया। उस समय वहाँके प्रसिद्ध समाचारपत्र 'पाल माल गज़ट' ने टीका करते हुए सच्ची शिक्षाका जो वर्णन किया है वह हम सबके लिए जानने योग्य है। 'पाल माल गजट' का लेखक कहता है :
- हम मानते हैं कि सच्ची शिक्षाका अर्थ पुरानी या वर्तमान पुस्तकोंका ज्ञान प्राप्त करना ही नहीं है। सच्ची शिक्षा वातावरण में है; आसपासकी परिस्थितिमें है; और साथ-संगतिमें, जिससे जाने-अनजाने हम आदतें ग्रहण करते हैं, तथा खासकर काममें है। ज्ञानका भण्डार हम अच्छी पुस्तकें पढ़कर बढ़ायें या और जगहसे प्राप्त करें, यह ठीक ही है। लेकिन हमारे लिए मनुष्यता सीखना ज्यादा जरूरी है। इसलिए शिक्षाका असल काम हमें ककहरा सिखाना नहीं, बल्कि मनुष्यता सिखाना है। अरस्तू कह गया है कि मोटी-मोटी पुस्तकें पढ़ लेनेसे सद्गुण नहीं आ जाते, सत्कर्म करनेसे सद्गुण आते हैं। फिर एक और महान लेखकने कहा है कि आप अच्छी तरह जानते हैं यह तो ठीक है, किन्तु आप ठीक तरहसे आचरण करेंगे तब सुखी माने जायेंगे। इस मापदण्डमें इंग्लैंडकी पाठशालाएँ कमजोर साबित हों सो बात नहीं। अंग्रेजी शालाओंका विचार हम मनुष्य बनानेवाले स्थानोंके रूपमें करें तो देखेंगे कि वे हमें शासनकर्ता देती हैं। जर्मन शालाओंके विद्यार्थी भले ज्यादा ज्ञान रखते हों, किन्तु यदि वे ईटनके विद्यार्थियोंके