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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

यदि एकता स्थापित की जा सकती है, औपचारिक नहीं वास्तविक एकता, तो फिर कोई माँग उस संयुक्त दल द्वारा ही एक निश्चित रूपमें सामने रखी जानी चाहिए। व्यक्तिगत रूपसे मेरा यह बताना कि वह माँग क्या होनी चाहिए, निरर्थक होगा; लेकिन मैं यह जरूर कहता हूँ कि मेरी दिली ख्वाहिश चाहे कुछ भी हो, बहुमत जो चाहेगा उसके रास्तेमें मैं रुकावट नहीं डालूँगा।

श्री गांधीसे पूछा गया, 'आपको स्वराज्यकी क्या परिभाषा है?

स्वराज्यकी मेरी अपनी परिभाषा है——तत्कालीन जनताके प्रतिनिधियों द्वारा व्यक्त भारतीय जनताकी इच्छा। स्वराज्यकी कोई बिलकुल ऐसी नपी-तुली परिभाषा हो ही नहीं सकती, जैसी कि ज्यामितिमें सीधी रेखाकी होती है। विभिन्न परिस्थितियोंके फलस्वरूप जनताकी मनोवृत्तिमें होनेवाले परिवर्तनोंके साथ-साथ जनताकी इच्छाका आग्रह भी बदलता रहता है। इसलिए स्वराज्यकी तात्कालिक परिभाषा है 'औपनिवेशिक स्वराज्य।'

श्री गांधीसे पूछा गया कि क्या आप अडंगा-नीतिका परित्याग करनेकी सलाह देंगे, विशेष रूपसे बंगालके सन्दर्भमें।

यदि बंगाल कौंसिलकी आगामी बैठकमें मन्त्रिमण्डल बनानेकी इच्छा स्पष्ट रूपसे प्रकट की गई तो क्या आप कौंसिलको एक स्वरसे उसका विरोध करनेकी सलाह देंगे? गांधीजीने मुस्कराकर उत्तर दिया :

मैं इस प्रश्नका उत्तर न देना ज्यादा पसन्द करूँगा। मैं चाहूँगा कि बंगाल निराश न हो, विश्वास न खो बैठे, क्योंकि ऐसा करना उस महान् दिवंगत नेताके प्रति विश्वासघात करना होगा। मैं जानता हूँ कि बहुधा जब विश्वासका कोई समुचित कारण भी नहीं होता तब भी मैं विश्वास बनाये रखता हूँ और फिर मेरा विश्वास बादमें घटनाओंसे सही भी सिद्ध हो जाता है।

बंगालके पास कल्पनाशक्ति प्रचुर मात्रामें है और उसकी सहनशक्ति भी अपार है। यह बात मैं अपने दौरेके समय देख चुका हूँ। मैं बंगालियोंसे कहूँगा कि यदि वे अपनेमें इन गुणोंके साथ अक्षुण्ण विश्वास भी रखें तो सब ठीक हो जायेगा।

श्री गांधीने कहा कि इस कठिन घड़ीमें श्रीमती दासके पास हूँ। इसे मैं अपना सौभाग्य मानता हूँ। वे अपना दुःख बड़े धैर्यके साथ सहन कर रही हैं।

उन्होंने उन नवयुवकोंकी प्रशंसा की जिन्होंने श्री दासकी अन्त्येष्टिके समय भीड़में उनकी रक्षाकी थी।

यदि उनकी मजबूत बाहें मुझे साधे न होतीं तो मैं शायद पिसकर चूर हो गया होता। श्मशान घाटपर खासकर ऐसी ही हालत थी।

[अंग्रेजीसे]
सर्चलाइट, २४-६-१९२५