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सम्पूर्ण गांधी वाङ् मय

"ब्रिटिश सरकारपर बन्दूक तानने" की बड़ी-बड़ी बातें कहकर की। हम योग्य डॉक्टर साहबको विश्वास दिला सकते हैं कि इस प्रकारकी बातोंसे सुविचारी उपनिवेशियोंको नफरत ही होती है।

'नेटाल विटनेस'ने अपने २७ फरवरी के अंकमें लिखा था :

किसी लक्ष्यको पूर्तिके लिए चालबाजी और धोखेबाजीका सहारा लेनेसे बढ़कर ब्रिटिश लोगोंकी भावनाओंको उत्तेजित करनेवाली बात और कोई नहीं हो सकती और उपनिवेशमें प्रवेशपर प्रतिबन्ध लगानेवाला यह विधेयक, वास्तविक उद्देश्यको चालाकियोंसे छिपाने का एक निन्दनीय प्रयत्न है। ऐसे उपायोंका सहारा लेकर उपनिवेश अपना और दूसरोंका भी सम्मान खो बैठेगा।

गिरमिटिया भारतीयोंको इस बिलके अमलसे बरी रखनेकी चर्चा करते हुए 'टाइम्स ऑफ़ नेटाल' ने २३ फरवरीके अंकमें लिखा था:

इससे साधारणतया सारे उपनिवेशको असंगति प्रकट होती है। सभी जानते है कि गिरमिटिया भारतीय उपनिवेशमें बस जाते हैं, और फिर भी सब या, कमसे-कम, निर्वाचकोंकी एक बहुत बड़ी संख्या गिरमिटिया भारतीयों को यहाँ बुलानेका निश्चय किये हुए है। इस असंगतिकी ओर ध्यान गये बिना नहीं रह सकता, और इससे एकदम प्रकट हो जाता है कि इस सारे प्रश्नपर लोकमत कितना बँटा हुआ है। भारतीयोंके विरुद्ध आपत्ति इस कारण की जाती है कि वे अज्ञानी हैं, वे मुंशियों और कारीगरोंके रूपमें दूसरोंका मुकाबला करते हैं, और व्यापारमें भी वे प्रतिस्पर्धी सिद्ध होते हैं। यह स्मरणीय है कि हालमें डर्बनमें जो हलचल हुई थी, उसमें प्रदर्शनकर्ताओंकी भीड़ डेलागोआ-बे से कुछ भारतीयोंको लेकर आये हुए एक जहाजकी तरफ इस इरादेसे जा रही थी कि उन्हें उतरने से रोक दे। ऐन मौकेपर किसीने आवाज लगाकर कहा कि ये भारतीय तो व्यापारी हैं, और भीड़ सन्तुष्ट हो गई। यह घटना इतना बतलाने के लिए काफी है कि उपनिवेशमें कुलियोंके प्रवेशका विरोध जनताके केवल एक भाग द्वारा किया जाता है।

परन्तु इन विधेयकोंके विरुद्ध सबसे गम्भीर और प्रबल आपत्ति यह है कि ये ऐसी बुराईको रोकने का दावा करते हैं जो कि मौजूद है ही नहीं। इतना ही नहीं, यदि सम्राज्ञीकी सरकारने उपनिवेशमें बसे हुए ब्रिटिश भारतीय प्रजाजनोंकी तरफसे दस्तन्दाजी न की तो भारतीय-विरोधी कानूनोंका अन्त कहीं भी नहीं होगा। शहरोंके नगरनिगमोंने सरकारसे प्रार्थना की है कि हमें भारतीय लोगोंको पृथक् बस्तियोंमें हटा देने, उन्हें व्यापार या पेशेके परवाने देने से इनकार कर देने (यह बात ऊपर उद्धृत विधेयकोंमें से भी एकसे पूरी हो जाती है), और भारतीयोंके हाथ अचल सम्पत्ति बेचने या उनके नामपर तब्दील करने से इनकार कर देनेका अधिकार दिया जाये। विश्वास किया जाता है कि सरकारने इनमें से प्रथम और अन्तिम माँग