पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 12.pdf/७१३

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सांकेतिका पा० टि०, ४९६ पा० टि०; की भारतीय कार्यके लिए सेवाएँ, ६३, ६४, ४५४ संघ-सद, ११०, ३९२ स संघ सरकार, ३४, ४१, ४३, ५५, १०५, १७५, २१०, २९६, ३६४, ४२२, ४६७; -की भारतीय विवाहोंके विषय में घोषणा, ३९४, ३९५; -ने गोखलेको तीन पौंडी कर हटानेका वचन दिया, २४४ सत्यदेव, १४२ सत्याग्रह, ७५, २४४ पा० टि०, ३४५; - अन्तिम शस्त्र, ४७५; का अर्थ सत्यकी शक्ति, आत्मिक शक्ति, प्रेमकी शक्ति, ४५२; -और शरीरबल में अन्तर, ३३६; -कमजोरोंका अस्त्र नहीं, ४३६; -कष्ट निवारणका एकमात्र अस्त्र, ३०९; का प्रताप, ४५८; का सिद्धान्त और व्यवहार, ४५१; -किस प्रकार आयोजित हो, १८९-९१; की अन्तिम लड़ाई, ४५१-५३; की घोषणा, १८६; -की सीमा, ३४५; के निर्णयको सरकारको सूचना, १७७-८०९ के समर्थन में सभा, २४४, २८५; के फिरसे छेड़नेका निश्चय, १८०-८२; - गोरोंकी वृत्ति बदलनेका सबसे अधिक प्रभाव- शाली तरीका, १८१; महान प्रतिज्ञा, २३०३ - में हार नहीं, ५०१; -यदि अस्थायी समझौते में सम्मिलित प्रश्न बिना सुझाये छोड़ दिये जायें, ८४; -यदि संघ प्रवासी प्रतिबन्धक विधेयक (१९१३) भारतीयोंको सन्तुष्ट करनेके लिए संशोधित न किया गया, ५२, ५३, ७४, ८०, ८१, ९५, ९८६ - हर परिस्थिति में प्रभावशाली, ४४ सत्याग्रह-निधि, -२३०; इकट्ठा करनेकी आवश्यकता, २१० सत्याग्रही, ८८; आत्माको आवाजके अनुसार चलता है, ४१४; को भारी यातना सहनेके लिए तैयार रहना चाहिए, ५९; -युद्धका समर्थन नहीं कर सकता, ५४५; -सत्याग्रहियोंकी गिरफ्तारी तथा सजा, १९६-९७, २०७; की रिहाईकी मांग, ३२५; के प्रति दुर्व्यवहार, २७९, ३०३ सन्त पाल, ३९६ समझौता; - एकप्रकारका 'मैग्ना कार्टा', ४५०, ४८९, ४९३; अपूर्ण, ४५३ ६७३ सरजू ; -का तीन पौंढ कर न देनेका मामला, १९९ सर्पदंश; -का इलाज, १५१; -जुस्टका दावा कि मिट्टी के इलाज से ठीक, १५३; -से प्रतिवर्षं मृत व्यक्तियोंकी संख्या, १५२ सल, न्यायमूर्ति, १, २, १४, १९, २०, २९, ८६, १९४, २०९ ;- का गैर-ईसाई विवाहाको अमा- न्यता देनेका फैसला, २५, ५३, ६२, ७,६ २१८, २२१, ३२७, ४४० ;- का निर्णय बहु-विवाह- से सम्बन्ध नहीं रखता, ७५ का निर्णय भार- तीयोंको उत्तराधिकारियोंसे वंचित करता है, ३५ - द्वारा खड़े किये प्रक्षको सुलझानेके लिए विवाह कानूनके संशोधनकी आवश्यकता, २७, २९ ;- नाबालिग बच्चों के अधिकारोंपर, ७ सर्वेन्टस ऑफ इंडिया सोसाइटी, ५२१ सर्वोच्च न्यायालय, ७, १४, १५, ७४, १०९, ११७, १९२, १९४, २१८, ३४४, ४९१; -की नेटाल विटनेस द्वारा आलोचना, ४२ सर्वोच्च न्यायालय (नेटाल डिवीजन), १४, ३४१;- का निश्चय कि गैर-ईसाई शादियोंको वैध होने- की मान्यता नहीं दी जा सकती, २१८; गैर- ईसाई शादियोंसे उत्पन्न उत्तराधिकारियोंको मान्यता न देनेके प्रश्नपर प्रश्न उठाता है, २८; -जनूबो के मामले में, १९, २५ साँडर्स, ४५९ साम्राज्य सरकार, ३१, ४४, ६९, ७० ८७, १००, १७५, १९३, २१०, ४२१, ४२३, ४३१, ४३३, ४८३ पा० टि०; की घोषणा कि किसी प्रकारका समाधान जो केप और नेटालके भारतीयोंके वर्तमान अधिकारोंमें खलल डालता है, स्वीकार न होगा, ८८, ९५, की दक्षिण आफ्रिकी भारतीयोंकी सहायता, ४३६, ४३८, ४६६; की संघ प्रवासी प्रतिबन्धक विषेषकपर भारतीयों को दिये गये वचनकी अवहेलना, १०३-०४ सॉलोमन, सर विलियम, २७७ पा० टि०, ३२०, ४८३ पा० टि०; को भारतीय एक सदस्यीय आयोगके रूपमें मानने को तैयार, २९७ सावर, जे० डब्ल्यू०, ४३, ९२ सिढेनहम, लॉर्ड, १७४, १७५ सिन्हा, ४१३ सिन्हा, सच्चिदानन्द, ५१४ पा० टि०